________________ 220 गणधरवाद 1ग्राह गणु मुत्तमेवं मुत्तं चिय कज्जमुत्तिमत्तानो। इध जह मुत्तत्तणतो घडस्स परमाणवो मुत्ता // 1625 / / तध सुहसंवित्तीतो संबंधे वेतणुब्भवातो य।। बज्झबलाधाणातो परिणामातो य विष्णेयं / / 1626 / / आहार इवाणल इव घडो व्व णेहादिकतबलाधाणो / खीरमिवोदाहरणाई कम्मरूवित्तगमगाइ / / 1627 / / अध मतमसिद्धमेतं परिणामातो त्ति सो वि कज्जाओ / सिद्धो परिणामो से दधिपरिमारणातिव पयस्स / / 1628 // अब्भातिविगाराणं जध वइचित्त विणा वि कम्मेण / तध जति संसारीणं हवेज्ज को णाम तो दोसो ? / / 1626 / / कम्मम्मि व को भेतो जध बज्झक्खंधचित्तता सिद्धा। तध कम्मपुग्गलाण वि विचित्तता जीवसहिताणं // 1630 // बझाण चित्तता जति पडिवण्णा कम्मणो विसेसेणं / जीवाणुगतस्स मता भत्तीण व सिप्पिणत्थाणं // 1631 / / तो जति तणुमेत्तं चिय हवेज्ज का कम्मकप्पणा णाम / कम्म पि गणु तणु च्चिय सण्हतरभंतरा रावरं // 1632 // को तीय विणा दोसो थूलातो सव्वधा विप्पमुक्कस्स / देहग्गहणाभावो ततो य संसारवोच्छित्ती // 1633 // सव्वविमोक्खावत्ती णिक्कारणतो व्व सव्वसंसारो। भवमुक्काणं च पुणो संसरणमतो अणासासो / / 1634 / / मत्तस्सामुत्तिमता जीवेण कधं हवेज्ज संबंधो ? / सोम्म ! घडस्स व णभसा जध वा दव्वस्स किरियाए // 1635 / / अधवा पच्चक्खं चियं जीवोवणिबंधणं जध सरीरं। चेट्ठइ कम्मयमेवं भवंतरे जीवसंजुत्तं // 1636 // मत्तेणामत्तिमतो उवघाताणुग्गहा कधं होज्ज / जध विण्णाणादीणं मदिरापाणोसधादीहिं // 1637 // 1. चो० ता० / 2. आ. ता० / 3. चिट्ठइ को० मु०। 4. होज्जा मु० को / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org