________________ 214 गणधरवाद जं चागमा विरुद्धा परोप्परमतो वि संसयो जुत्तो : सव्वप्पमाणविसयातीतो जीवो त्ति ते बुद्धी // 1553 / / गोतम ! पच्चक्खोच्चिय जीवो जं संसयातिविण्णाणं / पच्चक्खं च ण सज्झ जध सुहदुक्खं सदेहम्मि // 1554 / / कतवं करेमि काहं चाहमहंपच्चयादिमातो य / अप्पा सप्पच्चक्खो तिकालकज्जोवदेसातो / / 1555 / / किह पडिवण्णमहं ति य किमत्थि त्ति संसपो किध णु ? सइ संसयम्मि वाऽयं किस्साहंपच्चो जुत्तो // 1556 // जति पत्थि संसयि च्चिय किमत्थि णत्थि त्ति संसयो कस्स ? संसइते व सरूवे गोतम ! किमसंसयं होज्जा / / 1557 / / गुणपच्चक्खत्तणतो गुणी वि जीवो घडो व्व पच्चक्खो। घडरो वि घेप्पति गुणी गुणमेत्तग्गहणतो जम्हा / / 1558 / / अण्णोणण्णो व्व गुणी होज्ज गुणेहि जति णाम सोऽणण्णो // गणु गुणमेतग्गहणे घेप्पति जीवो गुणी सक्खं // 1556 // अध अण्णो तो एवं गणिणो न घडातयो वि पच्चक्खा / गुणमेत्तग्गहणातो जीवम्मि कतो वियारोऽयं ? // 1560 // अध मणसि अस्थि गुणी ग तु देहत्थंतरं तो किंतु / देहे णाणातिगुणा सो च्चिय तारणं गुणी जुत्तो / / 1561 / / णाणादयो न देहस्स मुत्तिमत्तातितो घडस्सेव / तम्हा णाणातिगुणा जस्स स देहाधियो जीवो // 1562 // इय तुह देसेणायं पच्चक्खो सव्वधा महं जीवो। अविहतणाणत्तणतो तुह विण्णाणं व पडिवज्ज / / 1563 / / एवं चिय पर देहेऽगुमागतो गेण्ह जीवमत्थि त्ति / अणुवित्ति-गिवित्तीतो विणणारामयं सरूवे ब्ब' ||1564 / / 1. तो-मु०। 2. दुक्खा-मु० / 3. कज्जावएसानो-को। 4. कह को० मु०। 5. अस्सा० -को०। 6. तेसि मु० को। 7. देहस्सऽमु-को। 8. पडिवज्जा-म०३ 9. सरूव्वं व ता०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org