________________ 215 गणधरवाद को गाथाएँ जा च ण लिगेहि समं मण्णसि लिंगी जतो पुरा गहितो। संगं ससेण व समं रण लिगतो तोऽणुमेयो सो // 1565 / / सोऽणेगंतो जम्हा लिंगेहि सम ण दिठ्ठपुन्वो वि। गहलिंगदरिसणातो गहोऽणुमेयो सरीरम्मि / / 1566 // देहस्सत्थि विधाता पतिणियताकारतो घडस्सेव / अक्खाणं च करणतो दण्डातीणं कुलालो ब्द // 1567 / / "अथिदियविसयाणं प्रादाणादेयभावतोऽवस्सं / कम्मार इवादाता लोए संदास-लोहारणं / / 1568 / / भोत्ता देहादीणं भोज्जत्तरगतो णरो व्व भत्तस्स / संघातातित्तणतो अत्थि य अस्थि घरस्सेव // 1566 / / ' Bजो कत्ताति स जीवो सज्झविरुद्धो त्ति ते मती होज्जा। मुत्तातिपसंगातो तण्णो संसारिणोऽ दोसो॥१५७०।। अत्थि च्चिय ते जीवो संसयतो सोम्म ! थाणुपुरिसो व्व / जं संदिद्ध गोतम ! तं तत्थण्णत्थ वत्थि धुवं // 1571 / / 10एवं णाम विसाणं खरस्स पत्तण तं खरे चेव / अण्णत्थ तदत्थि च्चिय एवं विवरीतगाहे वि // 1572 / / अत्थि अजीवविवक्खो पडिसेधातो घडोऽघडस्सेव / एत्थि घडोत्ति व जीवत्थित्तपरो गस्थिसद्दोऽयं // 1573 / / असतो पत्थि रिपसेधो संजोगातिपडिसेधतो सिद्ध। संजोगातिचतुक्कं पि सिद्धमत्थंतरे णियतं // 1574 / / जीवोत्ति सत्थयमितं सुद्धत्तणतो घडाभिधाणं व। जेणत्थेण सयत्थं सो जीवो अधमती होज्ज // 15753 1. यहाँ ता. प्रति में प्रश्नकर्ता के अर्थ वाला 'चोदक' शब्द का संक्षिप्त रूप 'चो. दिया हुआ है। इसी प्रकार 'मा०' शब्द प्राचार्य का बाचक है, वह भी प्राचार्य के कथन के प्रारम्भ में ता. प्रति में दिया हुआ है। 2. प्रा०-ता। 3. देखें गाथा 16671 4. देखें गाथा 16681 5. संडास को० म०। 6. घडस्सेब ता० / 7. देखें गाथा 1669 / 8. देखें, गाथा 16701 9. णो दोसो मा 10. चो० ता०। 11. य ता० / 12. सहो य ता०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org