________________ विशेषावश्यकभाष्यान्तर्गत गणधरवाद की गाथाएँ विशेषावश्यक भाष्य की व्याख्या करते हुये मलधारी प्राचार्य हेमचन्द्र ने गणधरवाद में जिन गाथानों की व्याख्या की है, अथवा जिन गाथाओं को उद्धृत किया है उन्हीं का प्रस्तुत पाठ में समावेश किया गया है। क्योंकि इस पुस्तक में मुद्रित गुजराती अनुवाद उक्त व्याख्या के आधार पर ही किया गया है। निम्नांकित गाथाओं की पाठ-शुद्धि के लिये मैंने तीन प्रतियों का आधार लिया है1. मु० = विशेषावश्वक भाष्य की मलधारीकृत व्याख्या / 2. को० = विशेषावश्यक भाष्य की कोट्याचार्यकृत व्याख्या / 3. ता० = जेसलमेर स्थित ताड़पत्र पर लिखी हुई विशेषावश्यक भाष्य की प्रति के आधार से पू० मुनि श्री पुण्यविजय जी महाराज द्वारा पं० अमृतलाल द्वारा की गई प्रतिलिपि सामान्यतया ताडपत्रीय प्रति प्राचीन और शुद्ध होने से उसी के पाठ को मैने प्रधानता दी है। जहाँ रचना भेद या अर्थ भेद के कारण पाठान्तर हैं उनको मैंने टिप्पणी में प्रदान किये हैं किन्तु सामान्यतया वर्णविकार के कारण जो पाठान्तर हैं, उनको मैंने छोड़ दिए हैं। जीवें तुह संदेहो पच्चक्खं जण्ण घेप्पति घडो व्वे / अच्चतापच्चक्खं च गत्थि लोए खपुप्फ व / / 1546 / / ण य सोऽणुमाणगम्मो जम्हा पच्चक्खपुव्वयं तं पि / पुवोवलद्धसम्बंधसंरणतो लिंगलिंगीणं / / 1550 / / ण य जीव लिंगसंबंधदरिसिणम जतो पुणो सरतो। तल्लिंगदरिसरणातो जीवो संपच्चो होज्जो // 1551 / / णागमगम्मो वि ततो भिज्जति ज णागमोऽणुमाणातो। ण य कासइ पच्चक्खो जीवो जस्सागमो वेयणं / / 1552 / / 1. कस्सा० ता० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org