________________ टिप्पणियाँ 205 पृ०114 पं० 27. प्रयत्न -न्याय-वैशेषिकों ने प्रात्मा में प्रयत्न नाम का एक गण माना है और वह कर्म (क्रिया) से भिन्न है, क्योंकि वह गुण है। पृ० 115 पं० 31. नित्य सत्वं-यह प्रा० धर्मकीति की कारिका है। इसका पूरा रूप यह है-- नित्यं सत्वमसत्वं वा हेतोरन्यानपेक्षणात् / अपेक्षातश्च भावानां कादाचित्कस्य सम्भवः / / प्रमाणवातिक 3.54. पृ० 121 पं० 2. देव-चर्चा-चार्वाक को छोड़ कर शेष सभी भारतीय दर्शनों ने देवों का अस्तित्व स्वीकार किया है। अतः देवों के अस्तित्व के विषय का सन्देह चार्वाकों का समझना चाहिए। पृ० 122 पं० 9. देव प्रत्यक्ष हैं. यह कथन भी पागमाश्रित ही समझना चाहिए / कारण यह है कि सर्य तथा चन्द्रादि ज्योतिष्कों को देव मान कर यहाँ यह प्रतिपादन किया गया है कि देव प्रत्यक्ष हैं। किन्तु इस बात में सन्देह का अवकाश है ही कि सूर्य-चन्द्रादि को देव मानना या नहीं। शास्त्र में उन्हें देव माना गया है, इस बात को स्वीकार करके ही उन्हें प्रत्यक्ष कहा जा सकता है / इस प्रकार यहाँ अागमाश्रय है। इस प्रागमाश्रय को आगे अनुनान द्वारा प्रामाणिक सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है / पृ० / 22 पं० 12. समवसरण में देव कथावत्थु नामक बौद्ध ग्रन्थ में भी यह बताया गया है कि इस लोक में देवागमन होता है / पृ० 128 पं० 2. नारक-चर्चा-इस चर्चा में भी यह समझ लेना चाहिए कि नारकों के अस्तित्व के सम्बन्ध का. सन्देह चार्वाकों का ही पक्ष है, अन्य भारतीय दर्शनों ने देवों के समान नारक भी माने ही हैं। पृ. 129 पं० 1. सर्वज्ञ को प्रत्यक्ष हैंसर्वज्ञ-साधक अनुमान में भी यही बात कही गई है कि सर्वज्ञ को अतीन्द्रिय पदार्थों का प्रत्यक्ष होता है / यहाँ सर्वज्ञ-प्रत्यक्ष से नारकों का अस्तित्व सिद्ध किया गया है। वस्तुतः सर्वज्ञत्व व नारक ये दोनों साधारण लोगों के लिए परोक्ष ही हैं। पृ. 129 पं० 19. इन्द्रिय ज्ञान परोक्ष है-अन्य दार्शनिक इन्द्रिय ज्ञान को लौकिक प्रत्यक्ष कहते हैं, जबकि जैन उसे सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कहते हैं। यहाँ उसकी परोक्षता का समर्थन किया गया है। प्रत्यक्ष शब्द में जो 'अक्ष' शब्द है, उसका अर्थ जैनों के अनुसार प्रात्मा है; जो केवल प्रात्म सापेक्ष हो उसे वह प्रत्यक्ष कहते हैं / अन्य दार्शनिक 'अक्ष' शब्द का अर्थ इन्द्रिय करते हैं तथा जो इन्द्रियजन्य हो उसे वे प्रत्यक्ष या लौकिक प्रत्यक्ष कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org