________________ टिप्पणियाँ 181 जैसी एक मूल तत्वभूत वस्तु है जो अनित्य है, परन्तु चार्वाक उसे मूल तत्व के रूप में नहीं मानते, वे केवल भूतों को ही मूल तत्वों में स्थान देते हैं / बौद्ध ज्ञान, विज्ञान तथा प्रात्मा इन सबको एक ही वस्तु मानते हैं। प्रात्मा और ज्ञान में नाम-मात्र का अन्तर है, वस्तु भेद नहीं / इसके विपरीत न्याय-वैशेषिक तथा मीमांसक प्रात्मा और ज्ञान को भिन्न-भिन्न वस्तु मानते हैं। नैयायिकादि सम्मत ज्ञान गुण ही बौद्ध मत में प्रात्मा है। सांख्य मत में प्रात्मा या पुरुष स्वतन्त्र तत्व है तथा बुद्धि प्रकृति से उत्पन्न होने वाला विकार है जिसमें ज्ञान, सुख, दुःख प्रादि वत्तियाँ आविर्भूत होती हैं। बौद्ध प्रात्मा और ज्ञान को एक ही मानते हैं अतः उनके मतानुसार प्रात्मा या ज्ञान भी अनित्य है। अन्य दार्शनिकों के मत में आत्मा या पुरुष नित्य है तथा बुद्धि या ज्ञान अनित्य / शांकर वेदान्त के अनुसार आत्मा चित्स्वरूप है, कूटस्थ नित्य है, ज्ञान उसका गुण या धर्म नहीं अपितु अन्तःकरण की एक वृत्ति है जो अनित्य है / पृ० 3 पं० 3 वैशाख सुदि एकादशी --श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान महावीर का गणधरों से समागम हुआ; किन्तु दिगम्बर मान्यता के अनुसार केवलज्ञान की प्राप्ति के 66 दिन बाद गणधरों का समागम हुआ। अतः वे उक्त तिथि को नहीं मानते। इसके लिए कषायपाहुड टीका पृ० 76 देखना चाहिए। भगवान् महावीर की आयु 72 वर्ष की थी तथा दूसरी मान्यतानुसार 71 वर्ष 3 मास व 25 दिन थी। इस प्रकार भगवान् महावीर की आयु सम्बन्धी दो मान्यताओं का उल्लेख कर कषायपाहड की टीका में वीरसेन ने इस बात का उत्तर देते हुए कि इन दोनों में से कौन सी ठीक है, बताया है कि, इस विषय में उन्हें उपदेश नहीं मिला अतः मौन रहना ही उचित है; (पृ० 81 देखें)। दिगम्बरों के अनुसार वैशाख शुक्ल एकादशी के स्थान पर श्रावण कृष्ण प्रतिपदा तीर्थोत्पत्ति की तिथि स्वीकार की जाती है / --- षट्खंडागम धवला पृ० 63 पृ० 3 पं० 4 महसेन वन-श्वेताम्बरों की मान्यता है कि गणधरों का समागम महसेन वन में हुआ था और वहीं तीर्थ प्रवर्तन हुअा था / दिगम्बर मानते हैं कि यह समागम राजगृह के निकटस्थ विपुलाचल पर्वत पर हुआ था और तीर्थ की प्रवर्तना भी वहीं हुई थी। कषायपाहुड टीका पृ० 73 देखें। पृ० 3 पं०11. सन्देह ---अर्थात् संशय / एक अोर का निर्णय कराने वाले साधक प्रमाण तथा बाधक प्रमाण के अभाव में वस्तु के अस्तित्व का या निषेध का निर्णय न होता हो. तो अस्तित्व और नास्तित्व जैसी दोनों कोटि को स्पर्श करने वाला जो ज्ञान होता है उसे संशय कहते हैं / जैसे कि जीव है या नहीं ? यह साँप है या नहीं ? अथवा यह साँप है या रस्सी ? पृ० 3 पं० 2. सिद्धि प्रत्यक्षादि प्रमाण द्वारा वस्तु का निर्णय करना / पृ०3 पं०12. प्रमाण---जिससे वस्तु का सम्यग् ज्ञान हो उसे प्रमाण कहते हैं / चार्वाक मतानुसार केवल प्रत्यक्ष (इन्द्रियों द्वारा होने वाला ज्ञान) ही प्रमाण है। बौद्ध तथा कुछ बैशेषिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org