________________ टिप्पणियाँ पृ० 3 पं० 2. जीव के अस्तित्व की चर्चा-प्रथम गणधर इन्द्रभूति के साथ हुए विवाद में जीव के अस्तित्व का प्रश्न मुख्य है / इन्द्रभूति द्वारा व्यक्त किया गया दृष्टिबिन्दु भारतीय दर्शनों में चावाक अथवा भौतिक दर्शन के नाम से प्रसिद्ध है। चार्वाक पक्ष जब यह कहता है कि प्रात्मा का अभाव है, तब उसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि आत्मा का सर्वथा अस्तित्व ही नहीं है। उसका तात्पर्य केवल यह है कि प्रात्मा चार भूतों के समान स्वतन्त्र द्रव्य नहीं है अथवा स्वतन्त्र तत्व नहीं है / अर्थात् चार्वाक पक्ष की मान्यता है कि भूतों के विशिष्ट समदाय से जो वस्तु निर्मित होती है वह प्रात्मा कहलोती है। इस समुदाय के नाश के साथ ही प्रात्मा नामक वस्तु भी नष्ट हो जाती है। सारांश यह है कि प्रात्मा एक भौतिक पदार्थ है, भूतव्यतिरिक्त कोई स्वतन्त्र तत्व नहीं है / चार्वाक को उसका सर्वथा प्रभाव अभीष्ट नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए न्यायवार्तिककार उद्योतकर ने कहा है कि, "सामान्यतः प्रात्मा के अस्तित्व के विषय में विवाद ही नहीं है, यदि विवाद है तो वह विशेष विषयक है। अर्थात् कोई शरीर को ही प्रात्मा मानता है, कोई बुद्धि को, कोई इन्द्रिय को तथा कोई मन को ही प्रात्मा स्वीकार करता है, कोई संघःत को प्रात्मा की संज्ञा देता है तथा कोई इन सबसे भिन्न स्वतन्त्र प्रात्मा का अस्तित्व स्वीकार करता है।" (न्याय वा०पृ० 336) प्रस्तुत चर्चा में यह बात सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है कि प्रात्मा भौतिक नहीं प्रत्युत स्वतन्त्र तत्व है। समस्त चर्चा इसी विषय से सम्बन्ध रखती है कि प्रात्मा स्वतन्त्र तत्व है या नहीं ? अन्त में यह सिद्ध किया गया है कि प्रात्म-तत्व स्वतन्त्र है, केवल भौतिक नहीं / यहाँ पर प्रतिपादित की गई युक्तियाँ भारतीय दर्शनों में साधारण हैं। किसी ग्रन्थ में उनका विस्तार है तथा किसी में सक्षप। ब्राह्मण-बौद्ध-जैन किसी भी दर्शन का ग्रन्थ देखने से ज्ञात होगा कि उन में इन युक्तियों द्वारा ही आत्मा का स्वातन्त्र्य सिद्ध किया गया है / ___ चार्वाक व बौद्ध ये दोनों इतनी बातों में सहमत हैं कि प्रात्मा स्वतन्त्र द्रव्य तथा नित्य द्रव्य नहीं है, अर्थात् शाश्वत द्रव्य नहीं है। अथवा दोनों के मत में प्रात्मा उत्पन्न होने वाली है। इन दोनों मतों में मतभेद यह है कि बौद्ध तो यह मानते हैं कि बुद्धि. अात्मा, ज्ञान या विज्ञान नामक एक स्वतन्त्र वस्तु है और चार्वाक कहते हैं कि आत्मा चार या पाँच भूतों से उत्पन्न होने वाली केवल एक परतन्त्र वस्तु है / बौद्ध अनेक कारणों से ज्ञान को उत्पन्न तो मानते हैं और इस अपेक्षा से ज्ञान को परतन्त्र भी कहते हैं, किन्तु ज्ञान के कारणों में ज्ञान और ज्ञानेतर दोनों प्रकार के कारणों को स्वीकार करते हैं। जबकि चार्वाक ज्ञान निष्पत्ति में केवल भूतों को अर्थात् ज्ञानेतर कारणों को ही मानते हैं / तात्पर्य यह है कि बौद्धों के अनुसार ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org