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________________ गणधरवाद 116 [ गणधर बेद-वाक्यों का समन्वय भगवान् -यदि मोक्ष न हो, मोक्ष में जोव का नाश हो जाता हो तथा मोक्ष में निरुपम सुख का अभाव हो तो निम्न वेद-वाक्य असंगत हो जाता है-"न ह वै सशरोरस्थ प्रियाप्रियोरपहतिरस्ति, अशरीर वा वसन्त प्रियाप्रिये न स्पृशतः / " अतः इस वाक्य का तात्पर्य मोक्ष का अस्तित्व, मोक्ष में जीव का अस्तित्व तथा निरुपम सुख का अस्तित्व प्रतिपादित करना है। इस लिए ‘मतिरपि न प्रज्ञायते' इस वाक्य का प्राधार लेकर मोक्षावस्था में जीव का सर्वथा अभाव नहीं माना जा सकता। 2015] प्रभास --'मतिरपि न प्रज्ञायते' इस वाक्य में जो यह कहा गया है कि जीव का मोक्ष में नाश हो जाता है, उसी का समर्थन प्राप द्वारा कथित उक्त वेद-वाक्य के 'अशर र वा वसन्तम्' इत्यादि अँश से होता है। उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है ... उक्त वाक्य में 'अशरीर' शब्द का अर्थ है कि जब शरीर सर्वथा नष्ट हो जाता है तब जीव भो खर-विषाण के समान असत् ही है, क्योंकि वह भी नष्ट है। अर्थात् अशरीर शब्द खर-विषाण के समान नष्ट जीव के लिए प्रयुक्त हुअा है / अतः वेद में कहा गया है कि अशरीर (नष्ट रूप जीव) को प्रिय या अप्रिय अर्थात् सुख या दुःख स्पश नहीं करते। इस प्रकार उक्त दोनों वेद-वाक्यों की संगति हो जाती है। अतः यह स्वीकार करना चाहिए कि मोक्ष में जीव का नाश ही वेद सम्मत है। 'मतिरपि न प्रज्ञायते का अर्थ यही समझना चाहिए कि मोक्ष में जीव का तथा सुख-दुःख का अभाव है। फलतः यह सिद्ध होता है कि वेद में दीप-निर्वाण के सदृश मोक्ष प्रतिपादित ह / [2016] भगवान्-तुम वेद-वाक्य का वास्तविक अर्थ नहीं जानते। इसीलिये तुम्हारा यह मत है कि वेद के अभिप्रायानुसार मोक्ष में जीव का नाश हो जाता है और सुख-दुःख भी नहीं होता। मैं तुम्हें उस वेद-वाक्य का यथार्थ अर्थ बताता हूँ तुम उसे सुनो। वेद में 'अशरोर' शब्द 'अधन' शब्द के समान विद्यमान में निषेध का द्योतक है। अर्थात् जैसे विद्यमान देवदत्त के विषय में 'अधन' शब्द का प्रयोग कर यह बताया जाता है कि देवदत्त के पास धन नहीं, अथवा विद्यमान देवदत्त में 'अधन' शब्द से धन का निषेध सूवित होता है वैसे हो विद्यमान जीव के लिए 'प्रशरीर' शब्द का प्रयोग यह सूचित करता है कि उस जीव का शरीर नहीं है। 'अशरीर' शब्द का अर्थ है बिना शरीर का जीव / यदि खर-विषाण के समान देवदत्त का सर्वथा अभाव हो तो उसके लिए 'अधन' शब्द का प्रयोग नहीं हो सकता। इसी प्रकार यदि जीव का भी सर्वथा अभाव हो तो उसके लिए भी 'अशरीर' शब्द का प्रयोग न हो। 2017] प्रभास-'अशरोर' शब्द में नत्र -निषेध पर्यु दास अर्थ के लिए है। अतः उसका अर्थ होगा कि 'कोई ऐसा पदार्थ जिसका शरीर नहीं है।' किन्तु आप यह कैसे कहते हैं कि वह पदार्थ जीव ही है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001850
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Canon
File Size9 MB
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