________________ प्रभास ] निर्वाण-चर्चा प्रसास-फिर तो आकाश के समान मुक्तात्मा को भी व्यापक मानना चाहिए? मुक्तात्मा व्यापक नहीं __ भगवान्–श्रात्मा की व्यापकता अनुमान प्रमाण से बाधित है, अत: जीवात्मा को व्यापक नहीं माना जा सकता। बाधा यह है-शरीर में ही आत्मा के गुणों की उपलब्धि होने से तथा शरीर से बाहर आत्मा के गुण अनुपलब्ध होने से आत्मा शरीर-व्यापी ही है, वह सकल आकाश में व्याप्त नहीं है। प्रभास-किन्तु जीव आकाश के समान द्रव्य होकर भी अमूर्त होने के कारण बद्ध या मुक्त नहीं होना चाहिए। आकाश किसी भी वस्तु से बद्ध नहीं होता। यदि आकाश में बन्ध नहीं है तो मुक्ति भी नहीं है, क्योंकि मुक्ति बन्ध-सापेक्ष होती है / इसी प्रकार जीव भी आकाश-सदृश अमूर्त द्रव्य होने के कारण बन्ध मोक्ष से रहित होना चाहिए। जीव में बन्ध व मोक्ष हैं भगवान्-जीव में बन्ध सम्भव है, क्योंकि उसकी दान अथवा हिंसादि क्रिया फलयुक्त होती है। बन्ध का वियोग भो जीव में शक्य है, क्योंकि वह बन्ध संयोगरूप होता है। जिस प्रकार सुवर्ण तथा पाषाण का अनादि-रूप संयोग भी संयोग है, इसीलिए किसी कारणवशात् उसका वियोग होता है; उसी प्रकार आत्मा के बन्ध-रूप कर्म-संयोग का भी सम्यग् ज्ञान व क्रिया द्वारा नाश होता है। वही मोक्ष है। इस तरह आकाश-सदृश मुक्तात्मा नित्य है, इसलिए मोक्ष भी नित्य सिद्ध होता है। [1985] मोध नित्यानित्य है किन्तु मेरे इस कथन से तुम्हें यह नहीं समझना चाहिए कि मैं मोक्ष को एकान्त नित्य मानने का प्राग्रह रखता हूँ। कारण यह है कि जब सभी वस्तुएँ उत्पाद-विनाश-स्थिति रूप हैं तब मोक्ष के लिए एकान्त नित्यता का प्राग्रह कैसे रखा जा सकता है ? मोक्षादि सभी पदार्थों को पर्याय नय की अपेक्षा से अनित्य कहा जा सकता है / [1986] प्रभास-यदि पदार्थ सर्वथा नित्य अथवा सर्वथा अनित्य नहीं हैं तो बौद्ध यह क्यों मानते हैं कि दोप-निर्वाण के समान मोक्ष में जीव का भी नाश हो जाता है? मोक्ष दीप-निर्वाण के समान नहीं, दोर का सर्वथा नाश नहीं ___ भगवान्-दीप की अग्नि का भी सर्वथा नाश नहीं होता / दीप भी प्रकाश परिणाम को छोड़ कर अन्धकार-परिणाम को धारण करता है; जैसे कि दूध दधि रूप परिणाम को धारणा करता है और घड़े की ठीकरियाँ बनती हैं तथा ठीकरियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org