________________ 162 गणधरवाद [ गणधर अवयव- विच्छेद घटादि की मुद्गरकृत ठीकरी के समान दिखाई देता है, अतः जीव के नित्य होने से मोक्ष भी नित्य मानना चाहिए / [1981] _प्रभास-हम मोक्ष को चाहे प्रतिक्षण विनाशी न मानें, किन्तु उसका कालान्तर में तो नाश मानना ही चाहिए, क्योंकि वह कृतक है जो कृतक होता है वह घट के समान कालान्तर में विनष्ट होता ही है, अतः मोक्ष का भी किसी समय नाश होना ही चाहिए। कृतक होने पर भी मोक्ष का नाश नहीं भगवान्-यह ऐकान्तिक नियम नहीं है कि जो कृतक होता है वह विनाशी ही होता है / घट का प्रव्वंसाभाव कृतक होने पर भी नित्य है, अविनाशी है / अतः कृतक होने से मोक्ष विनाशो है, यह नहीं कहा जा सकता। [1982] प्रभास --प्रध्वंसाभाव का उदाहरण नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वह खर-शृंग के समान तुच्छ है। किसी ऐसो विद्यमान वस्तु का उदाहरण देना चाहिए जो कृतक होकर भी अविनाशी हो। प्रध्वंसाभाव तुच्छ नहीं , भगवान्-घट का प्रध्वंसाभाव खर-शृंग के समान सर्वथा अभाव रूप या तुच्छ-रूप नहीं है। कारण यह है कि घट के विनाश से विशिष्ट स्वरूप विद्यमान पुद्गल द्रव्य को ही घट-प्रध्वं साभाव कहते हैं। [1983] मोक्ष कृतक ही नहीं है __अब तक मैंने जो स्पष्टीकरण किया है वह तुम्हारी इस बात को सच मान कर किया है कि मोक्ष कृतक है। किन्तु मैं तुम्हें एक बात यह पूछता हूँ कि जीव में से कर्म-पुद्गलों का संयोग नष्ट हो जाने पर ऐसी क्या बात हो गई कि जिससे तुम मोक्ष को कृतक कहते हो? तुम ही बताओ कि आकाश में संयोग सम्बन्ध से विद्यमान घट का नाश होने पर आकाश में कौनसी नवीनता का प्रादुर्भाव होता है ? आकाश तो वैसे का वैसा ही रहता है। इसी प्रकार जीव' में से कर्म के संयोग का नाश हो जाने पर जीव अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करता है। इससे अधिक जीव में कोई नवीनता नहीं पाती / अतः मोक्ष को एकान्त कृतक नहीं मान सकते / [1984] प्रभास-मुक्तात्मा की नित्यता का क्या प्रमाण है ? मुक्तात्मा नित्य है भगवान्—मुक्तात्मा नित्य है, क्योंकि वह द्रव्य होकर भी अमूर्त है। जैसे आकाश द्रव्य होकर भी अमूर्त होने के कारण नित्य है, उसी प्रकार मुक्तात्मा भी नित्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org