________________ प्रभास ] निर्वाण-चर्चा -161 सन्देह-निवारण-निरिण-सिद्धि, जीव-कर्म का अनादि संयोग नष्ट होता है भगवान् यद्यपि कनक-पाषाण तथा कनक का संयोग अनादि है तथापि प्रयत्न द्वारा कनक को कनक-पाषाण से पृथक किया जा सकता है, इसी प्रकार सम्यग् ज्ञान तथा क्रिया द्वारा जीव-कर्म के अनादि संयोग का अन्त हो सकता है तथा जीव से कर्म को पृथक किया जा सकता है। मैंने इस विषय का विशेष स्पष्टीकरण मण्डिक के साथ की गई चर्चा में किया है। अतः उसके समान तुम्हें भी मानना चाहिए कि जीव-कर्म का सम्बन्ध नष्ट हो सकता है। [1977] . प्रभास-नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव-रूप में जो जीव दिखाई देते हैं वस्तुतः वही संसार है / उक्त नारकादि अवस्था से रहित शुद्ध जीव तो कभी दिखाई नहीं देता। अर्थात् पर्याय-रहित केवल शुद्ध जीव-द्रव्य उपलब्ध नहीं होता। अतः जब नारकादि-रूप संसार का नाश हो जाता है तब तद्-अभिन्न जीव का भी नाश हो जाता है, फिर मोक्ष किस का होगा ? [1978] संसार-पर्याय का नाश होने पर भी जोव विद्यमान रहता है भगवान्-नारकादि जीव-द्रव्य की पर्यायें हैं। इन पर्यायों का नाश हो जाने से जोव-द्रव्य का भो सर्वथा नाश हो जाता है, यह धारणा अयुक्त है। जैसे अँगूठी का नाश होने पर भी सुवर्ण का सर्वथा नाश नहीं होता, उसी प्रकार जीव की नारकादि भिन्न-भिन्न पर्यायों का नाश होने पर भी जीव-द्रव्य का सर्वथा नाश नहीं होता / जैसे सुवर्ण की अँगूठी पर्याय का नाश होता है और कर्ण कूल पर्याय का उत्पाद होता है किन्तु सुवर्ण स्थित रहता है; वैसे ही जीव की नारकादि पर्याय का नाश होता है, मुक्ति पर्याय का उत्पाद होता है परन्तु जीव-द्रव्य विद्यमान रहता है। [1976] प्रभास-जैसे कर्म के नाश से संसार का नाश होता है वैसे ही जीव का भी नाश हो जाना चाहिए; अतः मोक्ष का अभाव ही मानना चाहिए / कर्म-नाश से संसार के समान जीव का नाश नहीं। भगवान्–ससार कर्मकत है, अतः कर्म के नाश से संसार का नाश होना सर्वथा उपयुक्त है; किन्तु जीवत्व कर्मकृत नहीं है, अत: कर्म के नाश से जीव का नाश किसलिए मानना चाहिए ? यदि कारण की निवृत्ति हो तो कार्य की भी निवृत्ति हो जाती है और व्यापक के निवृत्त होने पर व्याप्य भी निवृत्त हो जाता है, यह नियम है। किन्तु कर्म जीव का न तो कारण है और न व्यापक, अत: कर्म को निवृत्ति पर जीव की निवृत्ति आवश्यक नहीं है। कर्म का चाहे अभाव हो जाए किन्तु जीव का अभाव नहीं होता, अत: मोक्ष मानने में क्या आपत्ति है ? [1980] ' प्रभास-जीव का सर्वथा नाश नहीं होता, इसमें क्या कोई अनुमान प्रमाण है ? जीव सर्वथा विनाशी नहीं भगवान्-जीव विनाशी नहीं है, क्योंकि उसमें ग्राकाश के समान विकार (अवयव-विच्छेद) दिखाई नहीं देता। जो विनाशी होता है उसका विकार अर्थात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org