________________ अचलभ्राता पुण्य-पाप-चर्चा 141 अदृष्ट-रूप कर्म की सिद्धि भगवान् -अन्नादि दृष्ट मूर्त साधन समान हों, तो भी उनका सुख-दुःख आदि फल समान नहीं होता। जिस अन्न से एक व्यक्ति को प्रारोग्य का लाभ होता है, उसी से दुसरा व्यक्ति व्याधिग्रस्त बनता है। इस प्रकार दृष्ट अन्न समान होने पर भी सुख-दुःखादि की जो विशेषता दिखाई देती है वह सकारण होनी चाहिए, अतः अदृष्ट कर्म को उसका कारण मानना पड़ता है। यदि सुख-दुःखादि की विशेषता निष्कारण मानी जाए तो वह आकाश के समान या तो सदा विद्यमान रहेगी अथवा खर-विषाण के समान कभी भी उत्पन्न न होगी। किन्तु यह विशेषता कादाचित्क है, अतः उसका कारण अदृष्ट मूर्त कर्म मानना ही चाहिए। [1926] __अचलभ्राता—किन्तु वह कर्म दृष्टिगोचर नहीं होता-प्रदृष्ट है। फिर उसे मूर्त क्यों माना जाए ? अमूर्त क्यों न मान लिया जाए ? भगवान-उसे मूर्त इसलिए माना गया है कि वह देहादि मूर्त वस्तु का निमित्त मात्र बन कर घटा के समान बलाधायक है। अथवा जैसे घट को तेलादि मूर्त वस्तु से बल प्राप्त होता है वैसे ही कर्म को भी विपाक प्रदान करने में माला, चन्दनादि मूर्त वस्तुओं से बल की प्राप्ति होने के कारण कर्म भी घट के समान मूर्त है। अथवा कर्म को इसलिए भी मूर्त मानना चाहिए कि उसका देहादिरूप कार्य मूर्त है। जैसे परमाणु का कार्य घटादि मूर्त है, अतः परमाणु भी मूर्त या रूपादि .युक्त है, वैसे ही कर्म का कार्य शरीर भी मूर्त है, इसलिए कर्म को भी मूर्त मानना चाहिए। ___ अचलभ्राता किन्तु इस विषय में मेरा पुनः यह प्रश्न है कि क्या कर्म के देहादि कार्य मूर्त हैं, इसलिए कर्म मूर्त है अथवा सुख-दुःखादि कार्य के अमूर्त होने से कर्म अमूर्त है ? अर्थात् यदि आप कार्य को मूर्तता या अमूर्तता के आधार पर कारण की मूर्तता या अमूर्तता मानते हैं तो कर्म के कार्य मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार के हैं / अतः सहज ही प्रश्न होता है कि कर्म मूर्त है अथवा अमूर्त ? [1927-28] भगवान् –मेरे कथन का तात्पर्य यह तो नहीं है कि कार्य के मूर्त या अमूर्त होने पर उसके सभी कारण मूर्त या अमूर्त होने चाहिएँ। सुखादि अमूर्त कार्य का कारण केवल कर्म ही नहीं है, आत्मा भी उसका कारण है। दोनों में भेद यह है कि आत्मा समवायी कारण है तथा कर्म समवायी कारण नहीं है। अतः सुख-दुःखादि के अमूर्त कार्य होने से उनके समवायी कारण रूप आत्मा की अमूर्तता का अनुमान हो सकता है। सुख-दुःखादि की अमूर्तता के कारण कर्म की अमूर्तता के अनुमान 1. इसका तात्पर्य यह ज्ञात होता है कि पानी को लाने के लिए केवल शरीर अकिंचत्कर है। घट का सहकार प्राप्त होने पर ही शरीर में पानी लाने का सामर्थ्य उत्पन्न होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org