________________ 138 गणधरवाद [गणधर भगवान्-कारणानुमान तथा कार्यानुमान द्वारा इस परिणाम की सिद्धि होती है / अर्थात् कारण से कार्य का अनुमान करके तथा कार्य से कारण का अनुमान करके इस बात को सिद्ध किया जा सकता है। [1618] अचलभ्राता-अनुमान-प्रयोग किस प्रकार का है ? भगवान्-दानादि क्रिया तथा हिंसादि किया के कारणरूप होने से इनका कोई कार्य होना चाहिए। यह कार्य कोई अन्य नहीं, परन्तु जीव और कर्म का पुण्य व पाप-रूप परिणाम है। इस प्रकार कारणानुमान से जैसे तुम कृषि-क्रिया का कार्य शालि, जौ, गेहूँ आदि मानते हो, उसी प्रकार दानादि क्रिया का पुण्य तथा हिंसादि क्रिया का पाप-रूप कार्य कारणानुमान से मानना चाहिए। कहा भी है __ "समान प्रयत्न का समान फल मिलता है, तथा असमान प्रयत्न का भी समान फल मिलता है / प्रयत्न करने पर भी फल नहीं मिलता तथा प्रयत्न के अभाव में भी फल मिल जाता है। अतः ज्ञात होता है कि प्रयत्न के फल का आधार केवल प्रयत्न ही नहीं है, किन्तु वह जीव के किसी धर्म पर आधारित है। वह धर्म ही कर्म है।" __ कार्यानुमान का प्रयोग इस प्रकार है-देहादि का कोई कारण होना चाहिए, क्योंकि वे कार्य हैं, जैसे कि घटादि / देहादि का जो कारण है वह कर्म है। मैंने इस विषय की विशेष चर्चा अग्निभूति से की है। अतः उसके समान तुम्हें भी कर्म को स्वीकार करना चाहिए / [1616] अचलभ्राता-देहादि के कारण माता-पितादि प्रत्यक्ष हैं तो फिर अदृष्ट कर्म को मानने की क्या आवश्यकता है ? पुण्य-पाप रूप अदृष्ट कर्म की सिद्धि भगवान् - दृष्ट-कारण-रूप माता-पिता के समान होने पर भी एक पुत्र सुन्दर देह वाला होता है तथा दूसरा कुरूप। अतः दृष्ट-कारण माता-पिता से भिन्न रूप अदृष्ट कारण कर्म को भी मानना चाहिए। वह कर्म भी दो प्रकार का स्वीकार करना चाहिए पुण्य और पाप / शुभ देहादि कार्य से उसके कारणभूत पुण्य कर्म का तथा अशुभ देहादि कार्य से उसके कारणभूत पाप कर्म का अस्तित्व सिद्ध होता है / शुभ-क्रिया-रूप कारण से शुभ कर्म पुण्य की निष्पत्ति होती है तथा अशुभ-क्रिया-रूप कारण से अशुभ कर्म पाप की निष्पत्ति होती है। इससे भी कर्म के पुण्य व पाप ये दो भेद स्वभाव से ही भिन्नजा-तीय सिद्ध होते हैं / कहा भी है 1. समासु तुल्य विषमासु तुल्यं सतीष्वसच्चाप्यसतीषु सच्च / फलं क्रियास्वित्यथ यन्निमित्तं तद्देहिनां सोऽस्ति नु कोऽपि धर्मः // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org