________________ मौर्यपुत्र ] देव-चर्चा 127 उक्थ-षोडशि आदि क्रतु' से 'यम, सोम, सूर्य तथा सुरगुरु के स्वाराज्य पर विजय प्राप्त होती है' यह बात बताने वाले वाक्यों में देव का अस्तित्व प्रतिपादित ही है / देवों के अभाव में ये सब वाक्य व्यर्थ हो जाते हैं। अपि च, यदि इन्द्रादि देव न हों तो 'इन्द्र प्रागच्छ मेधातिथे मेषवृषण' आदि वाक्यों द्वारा इन्द्रादि का आवाहन निरर्थक सिद्ध होता है / अतः वेद-शास्त्र तथा युक्ति दोनों के आधार से तुम्हें देवों की सत्ता माननी चाहिए / [1883] इस प्रकार जरा-मरण से रहित भगवान ने जब मौर्यपुत्र के संशय का निवारण किया, तब उसने अपने साढ़े तीन सौ शिष्यों के साथ दीक्षा ली। [1884] 1. यूप सहित यज्ञ को ऋतु कहते हैं किन्तु जिस में यूप न हो तथा दानादि क्रियाएं हों, वह यज्ञ कहलाता है। 2. यम-सोम-सूर्य-सुरगुरु-स्वाराज्यानि जयति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org