________________ 120 गणधरवाद [ गणधर पुनश्च, स एष विगुणो विभुर्न विद्यते' आदि वाक्य का अर्थ तुम यह समझते हो कि संसारी जीव के बन्ध-मोक्ष नहीं हैं, किन्तु वस्तुतः यह वाक्य मुक्त जीव के स्वरूप का प्रतिपादक है / मैं भी तुम्हें बता चुका हूँ कि मुक्त के बन्धादि नहीं होते। इस युक्ति का समर्थन वेद-वाक्य से भी हो जाता है, अतः तुम्हें बन्ध-मोक्ष के सम्बन्ध में शंका नहीं करनी चाहिए। [1861-62] _इस प्रकार जब जरा-मरणरहित भगवान् ने मण्डिक के संशय का निवारण किया, तब उस ने अपने साढ़े तीन सौ शिष्यों सहित दीक्षा ली। [1863] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org