________________ 110 गणधरवाद [ गणधर मण्डिक-किन्तु दूसरा ऐसा कोई व्यक्ति दिखाई नहीं देता जो सर्वज्ञ हो और सर्व-संशय का निवारण करने वाला हो। अतः दृष्टान्त के अभाव में आपको सर्वज्ञ कैसे माना जाए ? भगवान् दृष्टान्त की क्या आवश्यकता है ? यह बात सिद्ध है कि ज्ञान के बिना संशय का निवारण नहीं हो सकता। तुम में से किसी को जो भी संशय हो, वह तुम मेरे सामने रखो और देखो कि मैं उन सब का निवारण करता हूँ या नहीं? सर्व-संशय का निवारण सर्वज्ञ के बिना सम्भव ही नहीं है। जब मैं सब संशयों का निराकरण करता हूँ तो तुम सब मुझे सर्वज्ञ क्यों नहीं मानोगे ? [1832] मण्डिक-अापने कहा है कि भव्यों का अनन्तवाँ भाग ही मुक्त हो सकता है, अर्थात् कुछ भव्य ऐसे भी हैं जो कभी मुक्त न होंगे। ऐसी स्थिति में उन्हें अभव्य हो कहना चाहिए। आप उन्हें भव्य क्यों कहते हैं ? [1833] मोक्ष में न जाने वाले भव्य क्यों ? . भगवान् भव्य का अर्थ योग्य है-अर्थात् उस जीव में मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता है। जिनमें योग्यता है वे सब मोक्ष जाते ही हैं, यह बात नहीं कही जा सकती। जिन भव्य जीवों को मोक्ष जाने के लिए सम्पर्ण सानग्रो प्राप्त होती है, वही मोक्ष जाते है / अतः भव्य जीव के मुक्त न होने का कारण सामग्री का प्रभाव है, योग्यता का अभाव नहीं। सुवर्ण, मणि, पाषाण, चन्दन, काष्ठ इन सब में प्रतिमा बनने की योग्यता है, फिर भी ये सभी द्रव्य प्रतिमा नहीं बनते, किन्तु शिल्पी इनसे हो मूर्ति का निर्माण कर सकता है, अर्थात् उक्त जिन द्रव्यों में से प्रतिमा का निर्माण न हुआ हो अथवा न होना हो, उन्हें प्रतिमा के अयोग्य नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार जिन भव्य जीवों को कभी मोक्ष नहीं जाना है उन्हें अभव्य नहीं कहा जा सकता। साराँश यह है कि ऐसा नियम बनाया जा सकता है कि जो द्रव्य प्रतिमा योग्य हैं उनको ही प्रतिमा बनती है, दूसरों की नहीं, तथा जो जीव भव्य हैं वही मोक्ष जाते हैं अन्य नहीं। किन्तु यह नियम नहीं बनाया जा सकता कि जो द्रव्य प्रतिमा योग्य हैं, उनको प्रतिमा अवश्य बनती ही है और जो जीव भव्य हैं वे मोक्ष जाते ही हैं / [1834] अथवा इस बात का स्पष्टीकरण इस प्रकार भी हो सकता है --कनक तथा कनक-पाषाण के संयोग में वियोग की योग्यता है अर्थात् कनक को कनक-पाषाण से पृथक् किया जा सकता है, किन्तु यह बात नहीं होती कि सभी कनक-पाषाणों से कनक अलग होता हो। जिसे वियोग की सामग्री मिलती है, उससे ही कनक पृथक होता है तथा सामग्री होने पर भी कनक सर्व प्रकार के पाषाण से नहीं प्रत्युत कनक पाषाण से ही अलग होता है। अतः यह कनक-पाषाण की ही विशेषता समझो जाती है, सब पाषाणों को नहीं। इसी प्रकार चाहे सभी भव्य मोक्ष न जाएँ, तथापि भव्य ही मुक्त होते हैं; इस आधार पर भव्यों में ही मोक्ष की योग्यता मानी जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org