________________ सुधर्मा ! इस भव तथा परभव के सादृश्य को चर्चा 101 ___ एक जीव प्रथम मनुष्य है, किन्तु मरकर जब वह देव बनता है तब सत्वादि धर्मों के कारण अपनी पूर्वावस्था के साथ तथा समस्त विश्व के साथ उसकी समानता होने पर भी देवत्वादि धर्मों के कारण पूर्वावस्था से असमानता है। उसी प्रकार वही मनुष्य जीव-रूप से नित्य है किन्तु मनुष्यादि पर्याय-रूप से अनित्य है / जीव जैसे समान और असमान धर्मों वाला है, वैसे ही वह नित्य और अनित्य भी है। उसमें इसी प्रकार अन्य अनेक विरोधी धर्मों की भी सिद्धि होती है। अतः परभव में जीव में सर्वथा सादृश्य नहीं है। सुधर्मा—मेरे मतानुसार भी कारण के साथ कार्य का सर्वथा सादृश्य नहीं है। किन्तु जब मैं यह कहता हूँ कि 'पुरुष मर कर पुरुष होता है' तब मेरा तात्पर्य केवल जाति के अन्वय से है। अर्थात् जाति नहीं बदलती, यही कथन करना मुझे इष्ट है। पर-भव में वही जाति नहीं भगवान् किन्तु यदि तुम पर-भव को कर्मजन्य मानते हो तो कर्म के हेतु की विचित्रता के कारण कर्म को भी विचित्र ही मानना पड़ेगा। फलतः कर्म का फल भी विचित्र स्वीकार करना होगा। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि पर-भव में उसो जाति का अन्वय रहता है / [1798] अपि च, यदि जाति समान ही रहती है तो समान जाति में भी जो उत्कर्षअपकर्ष दिखाई देता है, वह घटित नहीं होता। जो पुरुष इस भव में सम्पत्तिशाली हो, उसे पर-भव में भी वैसा ही रहना चाहिए। जो इस भव में दरिद्र हो उसे परभव में भी दरिद्र होना चाहिए। फलतः पर-भव में उत्कर्ष तथा अपकर्ष का अवकाश नहीं रहेगा। यदि यही बात हो तो दानादि का फल वृथा सिद्ध होगा, उसे निष्फल मानना पड़ेगा। किन्तु दानादि को निष्फल नहीं मान सकते। कारण यह है कि लोग इसी भावना से दानादि सत्कार्य में प्रवृत्त होते हैं कि परलोक में उन्हें देवताओं की समृद्धि मिले जिससे उनका उत्कर्ष हो / यदि सत्कार्य का कोई फल ही नहीं होता तो लोग दानादि में क्यों प्रवृत्त होंगे ? [1766] वेद-वाक्यों का समन्वय अपि च, जाति-सादृश्य का यदि एकान्त प्राग्रह रखा जाए तो वेद के निम्नलिखित वाक्य का विरोध होगा-"शृगालो वै एष जायते यः सपुरीषो दह्यते।" अर्थात् 'जिसे मल-मूत्र सहित जलाया है वह शृगाल बनता है।” उक्त वेद-वाक्य से यह सिद्ध होता है कि पुरुष मरकर शृंगाल हो सकता है। इसके अतिरिक्त 'अग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामः' अर्थात् 'स्वर्ग का इच्छुक अग्निहोत्र करे' तथा 'अग्निष्टोमेन यमराज्यमभिजयति' अर्थात 'अग्निष्टोम से यमराज्य पर विजय प्राप्त करता है' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org