________________ पंचम गणधर सुधमा इस भव तथा परभव के सादृश्य की चर्चा (कार्य-कारण के सादृश्य की चर्चा) उन सब के दीक्षित होने का समाचार सुनकर सुधर्मा भी यह विचार कर भगवान् के पास आया कि उनके निकट जाकर उन्हें नमस्कार करू तथा उनकी सेवा करूं / [1770] __ जन्म-जरा-मरण से मुक्त भगवान सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी थे, अतः उन्होंने उसे नाम-गोत्र-पूर्वक सम्बोधित करते हुए कहा 'सुधर्मा अग्निवेश्यायन !' [1771] इह-परलोक के सादृश्य-वैसादृश्य का संशय फिर भगवान् ने उसे कहा-वेद में कहा है 'पुरुषो मृतः सन् पुरुषत्वमेवाश्नुते, पशवः पशुत्वमा' अन्य स्थान पर कहा है 'शृगालो वै एष जायते यः स पुरीषो दह्यते / अतः तुम्हें यह संशय है कि जोव जैसा इस भव में है वैसा ही परभव में भी होता है या नहीं ? कारण यह है कि तुम प्रथम वाक्य का यह तात्पर्य समझते हो कि जीव भवान्तर में भी सदृश ही रहता है तथा दूसरे वाक्य का तात्पर्य तुम यह समझते हो कि भवान्तर में वैसादृश्य की सम्भावना है। अतः वेद-वाक्यों में परस्पर विरोध प्रतीत होने से तुम्हें संशय हुअा है, किन्तु यह संशय ठीक नहीं है / उन वाक्यों का तुम जो अर्थ समझते हो, वह यथार्थ नहीं है। मैं तुम्हें उनका वास्तविक अर्थ बताऊँगा, तब तुम्हारा संशय दूर हो जायेगा। [1772] कारण-सदृश कार्य पहले तुम्हारे भ्रम का निवारण करना आवश्यक है। तुम यह समझते हो कि कारण जैसा ही कार्य होता है; जैसे कि यवांकुर, यव बीज के समान होता है / अतः तुम यह स्वीकार करने के लिए लालायित हो कि परभव' में भी जीव इस भव के अनुरूप ही होता है / किन्तु तुम्हारी मान्यता प्रयुक्त है / [1773] 1. पुरुष मर कर परभव में भी पुरुष ही बनता है / पशु भी मर कर पशु ही होता है / 2. जिसे मल सहित जलाया जाता है, वह शृगाल रूप में जन्म ग्रहण करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org