________________ व्यक्त] शून्यवाद-निरास निर्मोही बनकर, वीतराग और सर्वज्ञ बने तथा अन्त में मोक्ष प्राप्त करे, यही इस कथन का भाव है। अतः उक्त वेद-वचन का तात्पर्य सर्व-शून्यता नहीं है किन्तु, पदार्थों में प्रासक्ति योग्य कोई वस्तु नहीं है, यही वेद-वचन का आशय है / [1768] ___इस प्रकार जरा-जन्म-मरण से मुक्त भगवान् ने जब उसका संशय दूर किया, तब उसने अपने 500 शिष्यों सहित दीक्षा लेली। [1766] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org