________________ व्यक्त ] शून्य वाद-निरास पृथ्वी आदि चारों भूत जीव द्वारा उत्पन्न तथा जीव के अाधारभूत शरीर हैं / कारण यह है कि वे अभ्रविकार से भिन्न प्रकार की मूर्त जाति के द्रव्य हैं, जैसे कि गाय आदि का शरीर / ये शरीर जब तक शस्त्रोपहत न हों तब तक सजीव हैं तथा शस्त्रोपहत होने के बाद वे निर्जीव हो जाते हैं। [1756] हे सौम्य ! यदि संसार में पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीव न हों तो संसार का ही विच्छेद हो जाए / कारण यह है कि संसार में से अनेक जीव मोक्ष में जाते रहते हैं तथा नए जीव उत्पन्न नहीं होते। लोक भी अति परिमित है, अतः उसमें स्थूल जीव तो थोड़े से ही रह सकते हैं, इसलिए संसार जीव-रहित हो जाएगा। किन्तु यह बात कोई भी स्वीकार नहीं करता कि संसार जीव-रहित हो जाता है। अतः पार्थिव आदि एकेन्द्रिय जीवों की अनन्त संख्या मानने चाहिए। ये जीव भूतों को अपना आधारभूत शरीर बनाकर उनमें उत्पन्न होते हैं। [1760-61] व्यक्त यदि पृथ्वी आदि भूतों में आपके कथनानुसार अनन्त जीव हों तो साधु को भी आहारादि लेने के कारण अनन्त जीवों की हिंसा का दोष लगेगा, इससे अहिंसा का अभाव हो जाएगा। भूतों के सजीव होने पर भी अहिंसा का सद्भाव भगवान् --अहिंसा का अभाव नहीं होता, क्योंकि मैं पहले ही कह चुका हूँ कि शस्त्रोपहत पृथ्वी आदि भूतों में जीव नहीं होता, वे सभी भूत निर्जीव होते हैं। तुम्हें हिंसा और अहिंसा का विवेक करना चाहिए / लोक जीवों से परिपूर्ण है, केवल इतने से ही हिंसा हो जाती है; यह बात नहीं है / [1762] अपि च, यह भी ठीक नहीं है कि कोई व्यक्ति जीव का घातक बना और इसी से वह हिंसक हो गया। यह भी असंगत है कि एक व्यक्ति किसी जीव का घातक नहीं, अतः वह निश्चयपूर्वक अहिंसक है। यह बात भी नहीं है कि थोड़े जीव हों तो हिंसा नहीं होती और अधिक जीव हों तो हिंसा होती है / [1763] ___ व्यक्त-फिर किसी को हिंसक या अहिंसक कैसे समझना चाहिए ? हिंसा-अहिंसा का विवेक . भगवान—जीव की हत्या न करने पर भी दृष्ट भावों के कारण कसाई के समान हिंसक कहलाता है तथा जीव का घातक होने पर भी शुद्ध भावों के कारण सुवैद्य के समान अहिंसक कहलाता है / इस प्रकार अनुक्रम से शद्ध तथा दुष्ट भावों के कारण जीव को मारने पर भी अहिंसक तथा न मारने पर भी हिंसक कहलाता है। [1764] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org