________________ व्यक्त ] शून्यवाद-निरास 89 व्यक्त-पृथ्वी आदि भूतों का आधार साध्य है, अतः दृष्टान्त में जल का आधार रूप जिस घटस्वरूप पृथ्वी का कथन किया गया है, उसे अभी साधाररूप में सिद्ध करना है। इसलिए वह प्राधारयुक्त अंश में साध्य ही है। अतः साधाररूप में अब तक प्रसिद्ध पृथ्वी को दृष्टान्त में कैसे सम्मिलित किया जा सकता है ? भगवान्-ऐसी अवस्था में उक्त अनुमान के स्थान पर निम्न अनुमान से भूतों का आधार सिद्ध करना चाहिए -- पृथ्वी प्राधार वाली है, मूर्त होने से, पानी के समान / इसी प्रकार पानी के आधार की सिद्धि के लिए अग्नि, अग्नि के आधार की सिद्धि के लिए वायु, तथा वायु के अाधार की सिद्धि के लिए पृथ्वी का दृष्टान्त देकर पृथक-पृथक् भूतों का आधार सिद्ध करना चाहिए। इससे उक्त दोष की निवृत्ति हो जाएगी। इस प्रकार उक्त भूतों के आधार रूप आकाश की सिद्धि हो जाने के कारण उसके अस्तित्व में सन्देह का स्थान नहीं रहता / [1750] हे सौम्य ! इस प्रकार प्रत्यक्षादि प्रमाणों ये सिद्ध भूतों की सत्ता स्वीकार करनी ही चाहिए। जब तक शस्त्र से उपघात न हुआ हो तब तक ये भूत सचेतन अथवा सजीव हैं, शरीर के आधारभूत हैं और विविध प्रकार से जीव के उपभोग में आते हैं। [1751] व्यक्त-आप ने भूतों को सजीव कैसे कहा ? भूत सजीव हैं भगवान् ---पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चारों ही सचेतन हैं, क्योंकि उन में जीव के लक्षण दिखाई देते हैं। किन्तु आकाश अमूर्त है और वह केवल जीव का आधार ही बनता है / वह सजीव नहीं है / [1752] व्यक्त—पृथ्वी के सचेतन होने में क्या हेतु है ? भगवान -सुनो, पृथ्वी सचेतन है क्योंकि उस में स्त्री में दृग्गोचर होने वाले जन्म, जरा, जीवन, मरण, क्षतसंरोहण, आहार दोहद, रोग, चिकित्सा इत्यादि लक्षण पाये जाते हैं। व्यक्त-अचेतन में भी जन्म आदि दिखाई देते हैं; जैसे दही उत्पन्न हुना। जीवित विष, निष्किय कसुम्बा जैसे प्रयोग से दही आदि में भी जन्म इत्यादि है, फिर भी वह सजीव नहीं। भगवान्-दही आदि अचेतन वस्तु में ऐसा प्रयोग प्रौपचारिक है, क्योंकि उसमें जरादि सभी धर्म मनुष्य के समान दिखाई नहीं देते। किन्तु वृक्षों में तो वे जन्मादि सभी भाव निरुपचरित हैं, अतः उन्हें सचेतन मानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org