________________ व्यक्त ] शून्यवाद-निरास 73 इस प्रकार तुम युक्ति से विचार करते हो कि संसार में भूतों की सत्ता ही नहीं है। किन्तु वेद में भूतों का अस्तित्व प्रतिपादित भी किया है। अतः तुम्हें संशय है कि भूत वस्तुतः है या नहीं ? [1666] - व्यक्त-आपने मेरे संशय का यथार्थ वर्णन किया है। कृपया अब उसका निवारण करें। संशय-निवारण __भगवान्–व्यक्त ! तुम्हें इस प्रकार का संशय नहीं करना चाहिए / कारण यह है कि यदि संसार में भूतों का अस्तित्व ही न हो तो उनके विषय में आकाश-कुसुम तथा खर-शृग के समान संशय ही उत्पन्न न हो। जो वस्तु विद्यमान हो, उसी के सम्बन्ध में संशय होता है, जैसे कि स्थाणु व पुरुष के सम्बन्ध में। [1697] भूतों के विषय में संशय का होना उनकी सत्ता का द्योतक है ऐसी कौन सी विशेषता है जिसके कारण सर्वशून्य होने पर भी स्थाणु-पुरुष के विषय में तो सन्देह होता है किन्तु आकाश-कुसुम, खर-शृग आदि के विषय में कोई संशय नहीं होता ? तुम ही इसको स्पष्ट करो / अथवा ऐसा क्यों नहीं होता कि आकाश-कुसुम आदि के विषय में ही संशय हो तथा स्थाणु-पुरुष के विषय में कभी भी संशय न हो, ऐसा विपर्यय क्यों नहीं होता ? अतः यह मानना चाहिए कि खर-शृग के समान सब कुछ ही समान-रूपेण शून्य नहीं है। [1698] व्यक्त-आप ही बताएँ कि किस विशेषता के कारण स्थाणु-पुरुष के सम्बन्ध में सन्देह होता है। भगवान् - प्रत्यक्ष, अनुमान तथा आगम-इन प्रमाणों द्वारा पदार्थ की सिद्धि होती है। अतः इन प्रमाणों के विषयभूत पदार्थों के सम्बन्ध में ही सन्देह उत्पन्न हो सकता है। जो विषय सर्व प्रमाणातीत हो उसके सम्बन्ध में संशय कैसे हो सकता है ? यही कारण है कि स्थाणु आदि पदार्थों के विषय में सन्देह होता है किन्तु आकाश-कुसुम आदि के विषय में नहीं। [1666] ___ अपि च, संशयादि ज्ञान-पर्याय हैं तथा ज्ञान की उत्पत्ति ज्ञेय से होती है। इससे भी ज्ञात होता है कि यदि ज्ञेय ही नहीं तो संशय भी कैसे हो सकता है ? [1700] ___ अतः संशय होने के कारण भी ज्ञेय का अस्तित्व अनुमान सिद्ध मानना चाहिए / वह अनुमान यह है -- ये सब पदार्थ विद्यमान हैं, क्योंकि उनके विषय में सन्देह होता है / जिसके विषय में सन्देह होता है वह स्थाणु-पुरुष के समान विद्यमान होता है / अतः संशय होने के कारण पदार्थों का अस्तित्व मानना चाहिए। व्यक्त --जब सब कुछ शून्य है तब स्थाणु-पुरुष भी असत् ही है, अतः वह भी प्रमाण सिद्ध नहीं है। फिर वह दृष्टान्त कैसे बन सकता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org