________________ 66 गणधरवाद [ গম্বর तथा ब्रह्मचर्य से नित्य, ज्योतिर्मय, विशुद्ध स्वरूप आत्मा प्राप्त की जा सकती है। धीर तथा संयतात्मा यति उसका साक्षात्कार करते हैं,''1 इत्यादि। इस प्रकार वेद में भी शरीर से भिन्न जीव का प्रतिपादन है। अतः यह बात माननी चाहिए कि जीव शरीर से भिन्न है / [1685] इस प्रकार जन्म-मरण से रहित भगवान ने जब उसके संशय का निवारण किया, तब वायुभूति ने अपने 500 शिष्यों के साथ जिन-दीक्षा अंगीकार की। [1686] 1. सत्येन लभ्यस्तपसा ह्यष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो विशुद्धों य पश्यन्ति धीरा यतयः सयतात्मानः। --मुण्डकोपनिषद् 3.1.5. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.