________________ गणधरवाद [ गणधर 8. आवरण के कारण-जैसे आँख को हाथ से ढक दिया जाए तो वह कुछ भी देख नहीं सकती / अथवा दीवार आदि से अन्तरित वस्तु भी दिखाई नहीं देती। 6. अभिभव के कारण-जैसे उत्कट सूर्य तेज से तारागण अभिभूत हो जाते हैं, अतः दिखाई नहीं देते। 10. सहशता होने के कारण बारीकी से ध्यान पूर्वक देखा हुआ उड़द का दाना यदि उड़द के समूह (ढेर) में मिला दिया जाय तो उड़द के सभी दाने एक समान होने के कारण उस दाने को ढूढना या पहचानना सम्भव नहीं है। 11. अनुपयोग के कारण--जिस मनुष्य का ध्यान उपयोग रूप में न हो वह जैसे गन्धादि को नहीं जानता वैसे / / 12. अनुपाय होने पर-- जैसे कोई व्यक्ति सींग देख कर गाय-भैंस के दूध के परिमाण को जानना चाहे तो वह नहीं जान सकता, क्योंकि दूध के परिमाण का ज्ञान प्राप्त करने का उपाय सींग नहीं है। 13. विस्मरण होने पर भी पूर्वोपलब्ध वस्तु का ज्ञान नहीं हो सकता। 14. दुरागम-मिथ्या उपदेश मिला हो तो सुवर्ण के समान चमकती हुई रेत को सुवर्ण मानने पर भी सुवर्ण की उपलब्धि नहीं होती। 15. मोह-मूढमति या मिथ्यामति के कारण विद्यमान जीवादि तत्वों का ज्ञान नहीं होता। 16. विदर्शन-दर्शन शक्ति के अभाव के कारण—जैसे जन्मान्ध को। 17. विकार के कारण वृद्धावस्था आदि विकार के कारण अनेक बार पूर्वोपलब्ध वस्तु की भी उपलब्धि नहीं होती। 18. प्रक्रिया से--जमीन खोदने की क्रिया न की जाए तो वृक्ष का मूल दिखाई नहीं देता। 16. अनधिगम--शास्त्र को न सुनने से उसके अर्थ का ज्ञान नहीं होता। 20. कालविप्रकर्ष के कारण भूत तथा भावी वस्तु की उपलब्धि नही होती। 21. स्वभावविप्रकर्ष अर्थात् अमूर्त होने के कारण आकाशादि दिखाई नहीं देता। इन 21 कारणों से विद्यमान वस्तु की अनुपलब्धि होती है / इन में प्रस्तुत में प्रात्मा स्वभाव से विप्रकृष्ट है, अर्थात् वह आकाश के समान समूर्त है, अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org