________________ 60 गणधरवाद [ गणधर सकता है, किन्तु सौगत उस प्रकार के अनेक ज्ञानों की युगपदुत्पत्ति स्वीकार नहीं करता / अतः सब वस्तुओं की क्षणिकता का ज्ञान कभी भी नहीं होगा। इसके अतिरिक्त यदि ज्ञान एक हो और एक समय में एक ही विषय का ज्ञान करता हो, किन्तु वह क्षणिक न हो तो वह कमशः सब वस्तुओं की क्षणिकता का परिज्ञान कर सकता है / किन्तु तुम विज्ञान को क्षणिक भी मानते हो, अतः वह सब पदार्थों की क्षणिकता का परिज्ञान कर ही नहीं सकता। इसलिए विज्ञान को क्षणिक नहीं मानना चाहिए / ज्ञान गुण है, अतः वह निराधार नहीं रह सकता / फलतः शरीर से भिन्न गुणी आत्मा भी स्वाकार करनी चाहिए / [1674] वायुभूति-आपने कहा है कि क्षणिक विज्ञान इस बात का ज्ञान नहीं कर सकता कि 'सभी पदार्थ क्षणिक हैं' इस का और अधिक स्पटीकरण करने की कृपा करें। भगवान्–बौद्ध मत के अनुसार विज्ञान स्व-विषय में ही नियत है और वह क्षणिक भी है, अतः इस प्रकार का विज्ञान अनेक विद्वानों के विषयभूत पदार्थों के धर्मों, क्षणिकता, निरात्मकता, दुःखता आदि को कैसे जान सकता हैं ? कारण यह है कि वे विषय उस ज्ञान के ही नहीं हैं / अपि च, वह ज्ञान क्षणिक होने के कारण उन विषयों को क्रमशः भी नही जान सकता / इस प्रकार अपने विषय से भिन्न सभी पदार्थ उस ज्ञान के लिए अविषय रूप ही हैं। अतः उनकी क्षणिकता आदि के ज्ञान की सम्भावना नहीं रहती। [1675] वायुभूति-- एक ही वस्तु का ग्रहण करने वाला क्षणिक विज्ञान भी सभो वस्तुओं के क्षण भंग का स्व-तथा स्व-विषय के समान अनुमान से ज्ञान कर सकता है / तात्पर्य यह है कि वह ज्ञान अनुमान करेगा कि संसार के सभी ज्ञान क्षणिक होने चाहिए, क्योंकि जो ज्ञान हैं वे सब ज्ञान होने के कारण मेरे समान ही क्षणिक होने चाहिए, उनके विषय भी क्षणिक होने चाहिए क्योंकि वे सभी मेरे विषय के सदृश ज्ञान के ही विषय हैं / मेरा विषय क्षणिक है, अतः वे सब ही क्षणिक होने चाहिए। इस प्रकार ज्ञान एक ही वस्तु का ग्रहण करते हुए तथा क्षणिक होते हुए भी समस्त वस्तुओं की क्षणिकता का ज्ञान कर सकता है। __ भगवान्--- तुमने जो अनुमान उपस्थित किया है वह अयुक्त है; कारण यह है कि जब पहले स्वेतर ज्ञान की सत्ता तथा स्व-विषयेतर विषयों की सत्ता सिद्ध हो जाए, तब उन सब की क्षणिकता का अनुमान हो सकता है / यह एक मान्य सिद्धान्त है कि प्रसिद्ध धर्मी पक्ष होता है / किन्तु वह क्षणिक विज्ञान उन सब की सत्ता को / तत्र पक्षः प्रसिद्धो धर्मी-न्यायप्रवेश पृ० 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org