________________ गणधरवाद [ गणधर वायुभूति-जैसे मद्यांगों के समुदाय में मद का आविर्भाव होने के कारण समुदाय के प्रत्येक अंग में भी मद-शक्ति माननी पड़ती है, अन्यथा उन के समुदाय में भी मद का आविर्भाव नहीं हो सकता; वैसे ही केवल भूतों के समुदाय से चैतन्य उत्पन्न होता है, इसलिए प्रत्येक भूत में भी चैतन्य शक्ति माननी चाहिए। किसी पृथक् चेतन को मानने की आवश्यकता नहीं। भगवान्-तुम्हारा यह कथन प्रसिद्ध है कि केवल भूतों के समुदाय से चैतन्य उत्पन्न होता है, क्योंकि उस समुदाय में केवल भूत ही नहीं हैं किन्तु आत्मा भी है; उसी से ही भूतों के समुदाय मैं चैतन्य प्रकट होता है। कारण यह है कि चैतन्य समुदायान्तर्गत आत्मा का धर्म है / तुम जिसे भूत-समुदाय कहते हो, यदि उसमें आत्मा का समावेश न हो तो चैतन्य कभी भी प्रकट नहीं हो सकता। भूतों के समदाय-मात्र से चैतन्य प्रकट हो जाता हो तो मृत-शरीर में भी उसकी उपलब्धि होनी चाहिए; किन्तु उसमें चैतन्य का अभाव स्पष्ट सिद्ध है। अतः चैतन्य को भूत मात्र से उत्पन्न नहीं माना जा सकता। वायुभूति-मृत-शरीर में वायु नहीं है, अतः वह सब भूतों का समुदाय नहीं होता। इसीलिए उसमें चैतन्य का अभाव है। ___भगवान्-मृत-शरीर में नली द्वारा वायु प्रविष्ट की जाए तो भी उसमें चैतन्य की उत्पति नहीं होती। वायुभूति-मृत-शरीर में अग्नि का भी अभाव है, तो फिर चैतन्य की उपलब्धि कैसे हो? भगवान्-मृत-शरीर में अग्नि की पूर्ति करने पर भी चैतन्य उपलब्ध नहीं होता। वायुभूति --मृत-शरीर में विशिष्ट प्रकार की वायु और अग्नि का अभाव है, अतः चैतन्य की प्राप्ति नहीं होती। भगवान-यह वैशिष्ट्य कोई अन्य नहीं किन्तु आत्मसहित वायू और अग्नि हो तो वे विशिष्ट वायु और विशिष्ट अग्नि कहलाती है। इस प्रकार तुमने सरे शब्दों में आत्मा का ही प्रतिपादन कर दिया है। [1655] . वायुभूति-भूत-समुदाय में चैतन्य प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है, फिर भी पाप कहते हैं कि वह भत-समुदाय का धर्म नहीं है। आपका यह कथन प्रत्यक्ष "वरुद्ध है। जैसे घट के रूपादि गुणों के प्रत्यक्ष होने पर भी कोई यह कहे कि रूपादि ग घट के नहीं हैं, तो उसका यह कथन प्रत्यक्ष-विरुद्ध होगा। भगवान् गौतम ! प्रत्यक्ष का विरोध नहीं है। क्योंकि उस प्रत्यक्ष का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org