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१०. दशवे गणधर मेतार्थ - - परलोक चर्चा १५२ - १५८
१५२-१५३
परलोक-विषयक सन्देह
भूत-धर्म चैतन्य का भूतों के साथ
नाश १५२
१५२
भूतों से उत्पन्न चैतन्य अनित्य है अद्वैत आत्मा का संसरण नहीं होता १५३ संशय - निवारण
१५३-१५८
परलोक सिद्धि, अत्मा स्वतन्त्र
आत्मा अनेक है
आत्मा देह-परिमाण है
आत्मा सक्रिय है
निर्वारण सम्बन्धी सन्देह निर्वाण विषयक मतभेद
द्रव्य है १५३
१५३
१५४
१५४
सन्देह-निवारण निर्वाण-सिद्धि, जीव-कर्म का अनादि
संयोग नष्ट होता है १६१ संसार पर्याय का नाश होने पर भी
जीव विद्यमान रहता है १६१ कर्म - नाश से संसार के समान जीव का नाश नहीं जीव सर्वथा विनाशी नहीं कृतक होने पर भी मोक्ष का नाश
नहीं
प्रध्वंसाभाव तुच्छ नहीं मोक्ष कृतक ही नहीं है मुक्तात्मा नित्य है।
मुक्तात्मा व्यापक नहीं
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११. ग्यारहवें गणधर प्रभास - निर्वाण चर्चा १५६ - १७६
१५६-१६०
१६० १६१-१७६
१६१
१६१
१६२
१६२
१६२
१६२
१६३
टिप्पणियाँ
वृद्धिपत्र
गणधरवाद की गाथाएँ *
देव नारक का अस्तित्व परलोक के प्रभाव का पूर्वपक्ष: विज्ञान अनित्य होने से
टीका के अवतरण
शब्द सूची
एकान्त नित्य में कर्तृत्वादि नहीं अज्ञानी आत्मा का संसरण नहीं परलोक - सिद्धि - आत्मा मनित्य है।
आत्मा नित्य १५४
घट भी नित्यानित्य है
विज्ञान भी नित्यानित्य है वेद-वाक्यों का समन्वय
जीव में बन्ध व मोक्ष है मोक्ष नित्यानित्य है पुद्गल के स्वभाव का निरूपण विषय-भोग के अभाव में भी मुक्त को सुख होता है। इन्द्रियों के अभाव में भी मुक्त ज्ञानी है
मुक्तात्मा अजीव नहीं बनता इन्द्रियों के बिना भी ज्ञान है। श्रात्मा ज्ञान स्वरूप है
१८०-२१०
२११-२१२
२१३-२५२
२५३-२५४
२५५-२६४
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अत: नित्य भी है १५५
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१५५ १५५
१५७
१५८
१६३
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पुण्य के अभाव में भी मुक्त सुखी है,
पुण्य का फल सुख नहीं है १७० देह के बिना भी सुख का अनुभव सिद्ध का सुख व ज्ञान नित्य है।
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सुख व ज्ञान प्रनित्य भी हैं वेद-वाक्यों का समन्वय
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