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संशय-निवारण
७३.६३ भूतों के विषय में संशय का होना
उनकी सत्ता का द्योतक है ७३ स्वप्न के निमित्त सर्व शन्यता में व्यवहाराभाव ७४ सभी ज्ञान भ्रान्त नहीं सर्व सत्ता मात्र सापेक्ष नहीं शन्यवाद में स्व-पर-पक्ष का
भेद नहीं घटता ७६ शन्यता स्वाभाविक नहीं
७७ वस्तु की अन्य-निरपेक्षता ७८ स्वतः परतः आदि पदार्थों की सिद्धि ७८
सर्वशून्यता का निराकरण उत्पत्ति सम्भव है मब कुछ अदृश्य नहीं अदर्शन अभाव-साधक नहीं होता पृथ्वी आदि भूत प्रत्यक्ष हैं वायु का अस्तित्व आकाश की सिद्धि भूत सजीव हैं भूतों के सजीव होने पर भी अहिंसा
का सद्भाव ६१ हिंसा-अहिंसा का विवेक वेद-वचन का समन्वय
५. पंचम गणधर सुधर्मा--इस भव तथा परभव के सादृश्य की चर्चा ९४-१०२ इह-परलोक के सादृश्य-वैसादृश्य
कर्म का फल परभव में भी होता है ६६ ' का संशय ९४-९५ कर्म के अभाव में संसार नहीं कारण-सदृश कार्य
६४ परभव स्वभावजन्य नहीं संशय-निवारण
___६५-१०२ स्वभाववाद का निराकरण कारण से विलक्षण कार्य १५ वस्तु समान तथा असमान है १०० कारण-वैचित्य से कार्य-वैचित्य ६५ परभव में वही जाति नहीं १०१ इस भव की तरह परभव विचित्र है ६६ वेद-वाक्यों का समन्वय | १०१
६. छठे गणधर मण्डिक-बन्ध-मोक्ष चर्चा १०३-१२० बन्ध-मोक्ष का संशय १०३-३०५ भव्यों का मोक्ष मानने से भी संसार जीव कर्म से पूर्व नहीं हो सकता' १०४
खाली नहीं होता १०६ कर्म जीव से पहले सम्भव नहीं १०४ सर्वज्ञ के वचन को प्रमाण मानो .. १०६ जीव तथा कर्म युगपद् उत्पन्न नहीं हैं १०४ मोक्ष में न जाने वाले भव्य क्यों ? ११० संशय-निवारण
१०५-१२० मोक्ष कृतक होने पर भी नित्य है १११ कर्म-सन्तति अनादि है
१०५ मोक्ष एकान्ततः कृतक नहीं १११ जीव का बन्ध
मुक्त पुन: संसार में नहीं आते १: कर्म-सिद्धि
प्रात्मा व्यापक नहीं है
११३ बन्ध अनादि सान्त है
१०७ प्रात्मा-नित्य-अनित्य है
११३ भव्य-अभव्य का भेद
१०८ मुक्त लोक के अग्रभाग में रहते हैं ११३ अनादि होने पर भी भव्यत्व का अन्त १०८ प्रात्मा अरूपी होने पर भी सक्रिय ११४
१०६ १०६
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