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जीव अनेक हैं जीव सर्व-व्यापी नहीं वेद वाक्यों का संगतार्थ जीव नित्यानित्य है
विज्ञान भत-धर्म नहीं वेद-पद का क्या अर्थ है ? वस्तु की सर्वमयता
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२. द्वितीय गणधर अग्निभूति---कर्म के अस्तित्व की चर्चा २६-४८ कर्म के विषय में संशय
२९-३०
कर्म विचित्र है कर्म-की सिद्धि
३०.४८
कार्मण देह स्थूल शरीर से भिन्न है ३६
मूर्त कर्म का अमूर्त प्रात्मा से सम्बन्ध ३६ कर्म साधक अनुमान
धर्म व अधर्म कर्म ही हैं. ४० सुख-दुःखमात्र दृष्ट कारणधीन नहीं ३१
मूर्त कर्म का अमूर्त प्रात्मा पर कर्म-साधक अन्य अनुमान
प्रभाव है ४१ कार्मण शरीर की सिद्धि
संसारी प्रात्मा मर्त भी है चेतन की क्रिया सफल होने के कारण
जीव-कर्म का अनादि सम्बन्ध ___ कर्म की सिद्धि ३२
वेद-वाक्यों की संगति क्रियः का फल अदृष्ट है
३४
ईश्वरादि कारण नहीं न चाहने पर भी अदृष्ट फल मिलता है ३५
स्वभाववाद का निराकरण अदृष्ट होने पर भी कर्म मूर्त है ३६
वेद-वाक्य का सम्बन्ध कर्म परिणामी है
४१
३. तृतीय गणधर वायुभूति-जीव-शरीर-चर्चा ४६-६६ जीब व शरीर एक ही है, यह संशय ४-६५० अतीन्द्रिय वस्तु की सिद्धि में प्रमाण ५५ संशय का निराकरण
५०-६६
भूत-भिन्न प्रात्मा का साधक अनुमान ५५ जो प्रत्येक में नहीं होता वह समुदायों
जीव क्षणिक नहीं
विज्ञान भी सर्वथा क्षणिक नहीं __में नहीं होता ५१
ज्ञान के प्रकार प्रत्येक भूत में चैतन्य नहीं ५१
विद्यमान होने पर अनुपलब्धि के भूत-भिन्न प्रात्मा का साधक अनुमान ५३
कारण ६३ इन्द्रियाँ आत्मा नहीं
५३ अात्मा का अभाव क्यों नहीं ? इन्द्रियाँ ग्राहक नहीं
वेद से समर्थन
४. चतुर्थ गणधर व्यक्त ..शून्यवाद-निरास ६७-६३ भूतों की सत्ता के विषय में संदेह ६७-७३
सर्व शून्यता का समर्थन पदार्थ मायिक हैं
उत्पत्ति घटित नहीं होती समस्त व्यवहार सापेक्ष
अदृश्य होने के कारण शून्यता
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