________________ गणधरवाद [ गणधर अहंप्रत्यय से जीव का प्रत्यक्ष इन्द्रभूति--आपने कहा है कि संशय विज्ञान-रूप से जीव प्रत्यक्ष है / यह बात ठीक है किन्तु किसी अन्य रीति से वह प्रत्यक्ष होता हो तो बताएँ। भगवान्'मैंने किया' 'मैं करता हूँ' 'मैं करूंगा' इत्यादि प्रकार से तीनों काल सम्बन्धी अपने विविध कार्यों का जो निर्देश किया जाता है, उसमें 'मैं' पन का जो अहंरूप ज्ञान होता है, वह भी आत्म प्रत्यक्ष ही है। यह अहंरूप ज्ञान किसी भी प्रकार अनुमान रूप नहीं, क्योंकि वह लिंगजन्य नहीं है। यह आगम प्रमाण रूप भी नहीं है, क्योंकि आगम से अनभिज्ञ सामान्य लोगों को भी अहंपन का अन्तर्मुख ज्ञान होता ही है और वही आत्मा का प्रत्यक्ष है। घटादि पदार्थों में प्रात्मा नहीं है, अतः उन्हें इस प्रकार के अहंपन का अन्तमुख आत्म-प्रत्यक्ष भी नहीं होता / [1555] फिर, यदि जीव का अस्तित्व ही नहीं है, तो उसे 'अहं' इस प्रत्यय का ज्ञान कहाँ से हो सकता है ? क्योंकि ज्ञान निविषय तो होता नहीं। यदि 'अहं'-प्रत्यय के विषयभूत आत्मा को स्वीकार न किया जाए तो 'अहं'-प्रत्यय विषय-रहित बन जाता है। ऐसी स्थिति में 'अहं'-प्रत्यय होगा ही नहीं। अहंप्रत्यय देह-विषयक नहीं इन्द्रभूति -अहं-प्रत्यय का विषय जीव के स्थान पर यदि देह को माना जाए तो भी अहंप्रत्यय निविषय नहीं हो पाता / 'मैं काला हूँ' 'मैं दुबला हूँ' इत्यादि प्रत्ययों में 'मैं' स्पष्टतः शरीर को लक्ष्य में रख कर प्रयुक्त हुआ है। अतः 'मैं' को यदि देह माना जाए तो इसमें क्या आपत्ति है ? भगवान्–यदि 'मैं' शब्द का प्रयोग शरीर के लिए ही होता हो तो मृत देह में भी अहंप्रत्यय होना चाहिए। ऐसा नहीं होता, अतः 'अहं' पन के ज्ञान का विषय देह नहीं, अपितु जीव है। पुनश्च, इस प्रकार अहंप्रत्यय से तुम्हें आत्मा प्रत्यक्ष ही है। फिर 'मैं हूँ या नहीं' इस संशय का अवकाश नहीं रहता। इससे विपरीत 'मैं हूँ ही' यह आत्म-विषयक निश्चय होना ही चाहिए। ऐसी स्थिति में भी यदि तुम्हारा आत्मा के सम्बन्ध में संशय बना रहता है तो फिर अहंप्रत्यय का विषय क्या रह जाएगा ? अर्थात् 'अहंप्रत्यय' किस का होगा? कोई भी ज्ञान निर्विषय नहीं होता, अतः अहंज्ञान का भी कोई विषय मानना चाहिए। तुम आत्मा को स्वीकार नहीं करते, अतः तुम ही बतायो कि अहंप्रत्यय का विषय क्या है / ' [1556] संशयकर्ता जीव ही है पुनश्च, यदि संशय करने वाला कोई न हो तो 'मैं हूँ या नहीं यह संशय किस को होगा ? संशय विज्ञान-रूप है और विज्ञान एक गुण है। गुणी के बिना गुण की सम्भावना नहीं, अतः संशयरूप विज्ञान का कोई गुणी मानना ही चाहिए। संशय का आधार गुणी ही जीव है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org