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गणधरवाद
(5) पौराणिक देवलोक
यह बात लिखी जा चुकी है कि वैदिक मान्यतानुसार तीनों लोकों में देवों का निवास है। पौराणिक-काल में भी इसी मत का समर्थन किया गया । योगदर्शन के व्यास-भाष्य में बताया गया है कि, पाताल, जलधि (समुद्र) तथा पर्वतों में असुर, गन्धर्व, किन्नर, किंपुरुष, यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, अपस्मारक, अप्सरस्, ब्रह्मराक्षस, कुष्माण्ड, विनायक नाम के देव-निकाय निवास करते हैं। भूलोक के समस्त द्वीपों में भी पुण्यात्मा देवों का निवास है। सुमेरु पर्वत पर देवों की उद्यान भूमियाँ हैं, सुधर्मा नामक देव सभा है, सुदर्शन नामा नगरी है और उसमें वैजयन्त प्रासाद है । अन्तरिक्ष लोक के देवों में ग्रह, नक्षत्र और तारों का समावेश है । स्वर्ग लोक में महेन्द्र में छह देव-निकायों का निवास है--त्रिदश, अग्निष्वात्ता, याम्या, तुषित, अपरिनिर्मितवशवर्ती, परिनिमितवशवर्ती, । इससे ऊपर महति लोक अथवा प्रजापति लोक में पाँच देव-निकाय हैं-कुमुद, ऋभु, प्रतर्दन, अंजनाभ, प्रचिताभं । ब्रह्मा के प्रथम जनलोक में चार देव-निकाय हैं— ब्रह्म-पुरोहित, ब्रह्म-कायिक, ब्रह्म-महाकायिक, अमर । ब्रह्मा के द्वितीय तपोलोक में तीन देव-निकाय हैं--प्राभास्वर, महाभास्वर, सत्यमहाभास्वर । ब्रह्मा के तृतीय सत्यलोक में चार देव-निकाय हैं-अच्युत, शुद्ध निवास, सत्याभ, संज्ञासंजी।।
इन सब देवलोकों में बसने वालों की प्रायु दीर्घ होते हुए भी परिमित है। कर्म-क्षय होने पर उन्हें नया जन्म धारण करना पड़ता है। (6) वैदिक असुरादि
सामान्यतः देवों और मनुष्यों के शत्रुनों को वेद में असुर, राक्षस, पिशाच आदि नाम से प्रतिपादित किया गया है। पणि और वृत्र इन्द्र के शत्रु थे, दास और दस्यु आर्य प्रजा के शत्रु थे। किन्तु दस्यु शब्द का प्रयोग अन्तरिक्ष के दैत्यों अथवा असुरों के अर्थ में भी किया. गया है और दस्युओं को वृत्र के नाम से भी वर्णित किया गया है। सारांश यह है कि वृत्र, पणि, असुर, दस्यु, दास नाम की कई जातियाँ थीं। उन्हें ही कालान्तर में राक्षस, दैत्य, असुर, पिशाच का रूप दिया गया। वैदिक काल के लोग उनके नाश के निमित्त देवों से प्रार्थना किया करते थे। (7) उपनिषदों में नरक का वर्णन
यह बात पहले कही जा चुकी है कि, ऋग्वेद-काल के आर्यों ने पापी पुरुषों के लिए नरक स्थान की कल्पना नहीं की थी, किन्तु उपनिषदों में यह कल्पना विद्यमान है। नरक कहाँ हैं ? इस विषय में उपनिषद् मौन हैं, किन्तु उपनिषदों के अनुसार नरक लोक अन्धकार से प्रावृत्त है, उसमें प्रानन्द का नाम भी नहीं है। इस संसार में अविद्या के उपासक मरणोपरान्त नरक को प्राप्त होते हैं। आत्मघाती पुरुषों के लिए भी यही स्थान है और अविद्वान् की भी मृत्यूपरान्त यही दशा है । बूढ़ी गाय का दान देने वालों की भी यही मति होती है। यही कारण है कि नचिकेता जैसे पुत्र को अपने उस पिता के भविष्य के विचार ने अत्यन्त दु:खी किया जो
1. विभूतिपाद 26.
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