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प्रस्तावना
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भूति प्राप्त करते है। किन्तु जो व्यक्ति यज्ञ नहीं करते, वे उनके तिरस्कार के पात्र बनते हैं। देवता नीति-सम्पन्न हैं, सत्यशील हैं, वे धोखा नहीं देते । वे प्रामाणिक और चरित्रवान् मनुष्यों की रक्षा करते हैं, उदार और पुण्यशील व्यक्तियों तथा उनके कृत्यों का बदला चुकाते हैं, किन्तु पापी को दण्ड देते हैं। देव जिस व्यक्ति के मित्र बन जाएँ, उसे कोई भी हानि नहीं पहुँचा सकता। देवता अपने भक्तों के शत्रुओं का नाश कर उनकी सम्पत्ति अपने भक्तों को सौंप देते हैं। सभी देवों में सौन्दर्य, तेज और शक्ति है। सामान्यतः देव स्वयं ही अपने अधिपति हैं, अर्थात् वे अहमिन्द्र हैं। यद्यपि ऋषियों ने उनके वर्णन में अतिशयोक्ति से काम लेते हुए वणित देव को सर्वाधिपति कहा है, तथापि सामान्यतः उसका अर्थ यह नहीं कि, बह देव गजा के समान अन्य देवों का अधिपति है। ऋषियों ने जिस देव की स्तुति की है, फलतः वह उसे प्रसन्न करने के लिए है, अतः स्वाभाविक है कि उसके अधिक से अधिक गुणों का वर्णन किया जाय। अतः प्रत्येक देव में सर्वसामर्थ्य स्वीकार किया गया । इसका परिणाम यह हुग्रा कि, बाद में यज्ञ के लिए सब देवों की महत्ता समान रूप से स्वीकार की गई । 'एक सद विप्रा बहुधा वदन्ति-1विद्वान एक ही तत्त्व का नाना प्रकार से कथन करते हैं—यह मान्यता दृढ़ हो गई। फिर भी यज्ञ-प्रसंग में व्यक्तिगत देवों के प्रति निष्ठा कभी भी कम नहीं हुई । भिन्न-भिन्न अवसरों पर भिन्न-भिन्न देवों के नाम से यज्ञ होते रहे। इसलिए हमें यह बात माननी पड़ती है कि, ऋग्वेद-काल में किसी एक ही देव का अन्य देवों की अपेक्षा अधिक महत्त्व नहीं था। ऋग्वेद-काल में एक देव के स्थान पर दूसरे देव को अधिष्ठिन कर देने की कल्पना करना असंगत है।
__ सभी देव धुलोक-निवासी नहीं हैं। वैदिकों ने लोक के जो तीन विभाग किए हैं. उनमें उनक, निवास है । धुलोकवापी देवों में द्यौ, वझण, सूर्य, मित्र, विष्णु, दक्ष, अश्विन प्रादि का समावेश है। अन्तरिक्ष में निवास करने वाले देव ये हैं -इन्द्र, मरुत, रुद्र, पर्जन्य, पापः आदि । पृथ्वी पर अग्नि, सोम, बृहस्पति प्रादि देवों का निवास है । (2) वैदिक स्वर्ग-नरक
इस लोक में जो मनुष्य शुभ कर्म करते हैं, वे मर कर स्वर्ग में यमलोक पहुँचते हैं। यह यमलोक प्रकाश-पुज से व्याप्त है। वहाँ उन लोगों को अन्न और सोम पर्याप्त मात्रा में मिलता है एवं उनकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती है। कुछ व्यक्ति विष्णु अथवा वरुणलोक में जाते हैं । वरुणलोक सर्वोच्च स्वर्ग है । वरुणलोक में जाने वाले मनुष्य की सभी त्रुटियाँ
1. ऋग्वेद 1.164.46. 2. देशमुख की पूर्वोक्त पुस्तक पृ० 317-322 का सार 3. ऋग्वेद 9..113.7 से 4. ऋग्वेद 1.1.54. 5. ऋग्वेद ?. 8.5 6. ऋग्वेद 10.14.8; 10.15.7.
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