________________
प्रस्तावना
विज्ञान का लक्ष्य भी ग्रानन्द ही है, अतः इसमें कोई श्राश्चर्य की बात नहीं कि, विचारकों ने प्रानन्दात्मा को विज्ञानात्मा का अन्तरात्मा स्वीकार किया । पुनश्च मनुष्य में दो भावनाएँ हैं - दार्शनिक और धार्मिक । दार्शनिक विज्ञानात्मा को मुख्य मानते हैं, किन्तु दार्शनिकों के अन्तर में ही स्थित धार्मिक प्रात्मा श्रानन्दात्मा की कल्पना कर सन्तोष का अनुभव करे, तो यह कोई नई या आश्चर्य की बात नहीं है ।
(6) पुरुष, चेतन श्रात्मा - चिदात्मा ब्रह्म
-
विचारकों ने आत्मा के विषय में अन्नमय आत्मा से लेकर श्रानन्दात्मा पर्यन्त प्रगति की, किन्तु उनकी यह प्रगति अभी तक ग्रात्म-तत्त्व के भिन्न-भिन्न प्रावरणों को आत्मा समझ कर ही हो रही थी । इन सब आत्माओं की भी जो मूल रूप ग्रात्मा थी, उसका अन्वेषण ग्रभी बाकी था । जब उस ग्रात्मा की शोध होने लगी, तब यह कहा जाने लगा कि, अन्नमय आत्मा जिसे शरीर भी कहा जाता है, रथ के समान है, उसे चलाने वाला रथी ही वास्तविक श्रात्मा है । आत्मा से रहित शरीर कुछ भी करने में असमर्थ है । शरीर की संचालक शक्ति ही आत्मा है । इस प्रकार यह बात स्पष्ट कर दी गई कि शरीर और ग्रात्मा ये दोनों तत्त्व पृथक् हैं । आत्मा से स्वतन्त्र होकर प्राण कुछ भी क्रिया नहीं करता । श्रात्मा प्राण का भी प्राण है । प्रश्नोपनिषद् में लिखा है कि, प्राण का जन्म मनुष्य की छाया का आधार स्वयं मनुष्य है, उसी प्रकार प्राण इस प्रकार प्राण और आत्मा का भेद सामने आया ।
श्रात्मा से ही होता है । आत्मा पर अवलम्बित है ।
केनोपनिषद् में यह सूचित किया गया है कि, यह आत्मा इन्द्रिय और मन से भी भिन्न है । वहाँ बताया गया है कि इन्द्रियाँ और मन ब्रह्म-आत्मा के बिना कुछ भी करने में असमर्थ हैं । आत्मा का अस्तित्व होने पर ही चक्षु प्रादि इन्द्रियाँ और मन अपना-अपना कार्य करते हैं । जिस प्रकार विज्ञानात्मा की अन्तरात्मा ग्रानन्दात्मा है, उसी प्रकार प्रानन्दात्मा की अन्तरात्मा सत्रूप ब्रह्म है । इस बात का प्रतिपादन करके विज्ञान और प्रानन्द से भी परे ऐसे ब्रह्म की कल्पना की गई ।
ब्रह्म और आत्मा पृथक् पृथक् नहीं हैं, किन्तु एक ही तत्त्व के दो नाम हैं । इसी आत्मा को समस्त तत्त्वों से परे ऐसा पुरुष भी माना गया है और सब भूतों में गूढात्मा भी कहा
1.
2.
3.
87
तैत्तिरीय 2,5.
Nature of Consciousness in Hindu Philosophy p. 29.
छागलेय उपनिषत् का सार देखें - History of Indian Philosophy, vol. 2, p. 131
मंत्री उपनिषद् 2.3.4; कठोपनिषद् 1.3.3
4.
केनोपनिषद् 1-2.
5. प्रश्नोपनिषद् 3-3.
6.
केनोपनिषद् 1.4-6.
7. तैत्तिरीय 2-6.
8.
सर्व हि एतद् ब्रह्म अयमात्मा ब्रह्म - माण्डुक्य 2; बृहदा० 2-5-19.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org