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तत्त्वानुशासन
के अनुसार पदों को उच्चारण ध्याता करे । अंक १. णमो अरहताणं, अंक २. णमो सिद्धाणं, अंक ३ णमो आइरियाणं, अंक ४. णमो उवज्झायाणं और अंक ५. णमो लोए सव्वसाहणं के प्रतीक हैं। ध्याता इस विधि से जाप्य करता है तो मन की एकाग्रता को प्राप्त कर अशुभकर्मों को असंख्यातगणी कर्म निर्जरा कर मुक्ति का भाजन बनता है। यह महामन्त्र १८४३२ प्रकार से बोला जा सकता ।
अट्टेव य अट्ठसया, अट्ठसहस्स अट्टलक्ख अट्ठकोडीओ।
जो गणइ भत्ति जुत्तो, सो पावइ सासयं ठाणं ॥ जो भव्यजीव ८ करोड़, ८ लाख, ८ हजार, ८ सौ, ८ बार इस अनादि निधनमंत्र का जाप करता है वह शाश्वत सुख को प्राप्त करता है।
नवकार इकक्रक्खरं पावं कडई सत्त सायराणं । पन्नासं च पएणं सागर पणासया समग्गेणं ।। १ ।। जो गुणई लक्खमेणं, पूएइ जिणनमुक्कारं ।
तित्थयर नाम गोअं, सो बंधइ णत्थिसन्देहो ॥ २॥ णमोकार मन्त्र के एक अक्षर का भो भक्तिपूर्वक नाम लेने से सात सागर के पाप कट जाते हैं, पाँच अक्षरों का पाठ करने से पचास सागर के पाप कट जाते हैं तथा पूर्ण मन्त्र का उच्चारण करने से पाँच सौ सागर के पाप कट जाते हैं।
जो श्वेतपुष्पों से णमोकार मन्त्र का एक लाख जाप्य करता है वह तीर्थंकर नाम कर्म का बन्ध करता है इसमें कोई सन्देह नहीं चाहिए चाहिये।
णमोकार मंत्र को श्वासोच्छवास में जप करना सर्वोत्तम बताया है। एक णमोकार को तीन श्वासोच्छ्वास में पढ़ना चाहिये। यथा-णमो अरिहंताणं में श्वांस खींचना, णमो सिद्धाणं में श्वांस छोड़ना, णमो आइरियाणं में श्वांस खींचना, णमो उवज्झायाणं में श्वांस छोड़ना तथा णमो लोए में श्वांस खींचना सव्वसाहूणं में श्वांस छोड़ना। इस प्रकार कुंभक-रेचक द्वारा एक बार णमोकार मंत्रोच्चारण में तीन श्वासोच्छ्वास पूरे लगते हैं। यह विधि इष्ट सिद्धि, ऋद्धि, वृद्धि को कर ध्याता को गन्तव्य की ओर ले जाती है।
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