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तत्वानुशासन पञ्चाक्षरी मन्त्र-(१) असि आ उ सा (२) ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रौं ह्रः (३) णमो सिद्धाणं (४) नमः सिद्धेभ्यः ।
छः अक्षरी मन्त्र-(१) अरहंत सिद्ध (२) ॐ नमो अर्हते (३) अहद्भ्यो नमः (४) अर्हद्भ्यः नमोस्तु (५) ॐ नमः सिद्धेभ्यः (६) नमो अर्हत्सिद्धेभ्यः ।
सप्ताक्षरी मन्त्र-(१) णमो अरहंताणं (२) नमः सर्व सिद्धेभ्यः । अष्टाक्षरी मन्त्र- नमोऽहत्परमेष्ठिने । १३ अक्षरी मन्त्र-अर्हत् सिद्धसयोगकेवली स्वाहा । १६ अक्षरी मन्त्र-अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसाधुभ्यो नमः । ३५ अक्षरी मन्त्र-णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं ।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ।। पणतीस सोलछप्पणचदुदुगमेगं च जवह ज्झाएह ।
परमेट्ठिवाचयाणं अण्णं च गुरूवएसेण ।। पञ्चपरमेष्ठी वाचक पैंतीस, सोलह, छह, पाँच, चार, दो और एक अक्षररूप मन्त्र हैं उनका जाप करने से असंख्यातगुणी कर्म निर्जरा होती है नवीन कर्मों का आस्रव रुककर ध्यान को सिद्धि होती है।
राजपंडित बंशीधरकृत मानसागरी पद्धति में महामन्त्र का ध्यान कैसे ? सुन्दर चित्रण लिखा है
साधक का मूल लक्ष्य है-"आत्म जागरण"। आत्म जागरण का अर्थ है-निज का जागरण, आनन्द का जागरण, शक्ति का जागरण, अपने परमात्म स्वरूप का जागरण, अहंत्स्वरूप का जागरण ।
नमस्कार-महामंत्र-की साधना का समग्र दृष्टिकोण है-आत्मा का जागरण। पूरी चेतना को जगाना, शक्ति के स्रोतों का जाग्रत करना, आनन्द के महासागर में अवगाहन करना। महामन्त्र को आराधना से निर्जरा होती है, कर्मक्षय होता है आत्मा की विशुद्धि होती है । इस बात को मानकर जब चाहे तब इसका जाप कर सकते हैं। जब-जहाँ-जैसे भी हो चलते-फिरते-उठते-बैठते हर क्षण इसका जाप कर सकते हैं। णमोकार मंत्र के जाप्य की अनेक विधियाँ हैं जो सभी पदस्थ ध्यान में सम्मिलित की जाती हैं। श्री धवलराज महाग्रन्थ में आचार्यश्री ने इस जाप्य की तीन विधियाँ वर्णित की हैं-१. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चातानुपूर्वी ३. यथातथ्यानुपूर्वी । यथा
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