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________________ तत्त्वानुशासन विशेष-प्रायः यह कहा जाता है कि हम तो अल्पश्रुत हैं, अतः ध्यान कैसे सम्भव है और पञ्चम काल में मोक्ष होता नहीं है, अतः ध्यान करना निष्फल है। इसी भ्रान्ति को निमल करने के लिए कहा गया है कि सब परिस्थितियों को देखकर भी जितना सम्भव हो ध्यान अवश्य करना चाहिये। बृहद्रव्यसंग्रह की वृत्ति मे ब्रह्मदेव ने ऐसी ही शंका उठाकर समाधान प्रस्तुत किया है । उसे यहाँ मूल रूप से उद्धृत कर रहे हैं - "मोक्षार्थं ध्यानं क्रियते न चाद्यकाले मोक्षोऽस्ति; ध्यानेन किं प्रयोजनम् ? नैवं, अद्य कालेऽपि परम्परया मोक्षोऽस्ति । कथमिति चेत् ? स्वशुद्धात्माभावनाबलेन संसारस्थिति स्तोकां कृत्वा देवलोकं गच्छति, तस्मादागत्य मनुष्यभवे रत्नत्रयभावनां लब्ध्वा शीघ्रं मोक्षं गच्छतीति । येऽपि भरतसगररामपाण्डवादयो मोक्षं गताः तेऽपि पूर्वभवे भेदाभेदरत्नत्रयभावनया संसारस्थिति स्तोकं कृत्वा पश्चान्मोक्षं गताः । तद्भवे सर्वेषां मोक्षो भवतीति नियमो नास्ति । एवमुक्तप्रकारेण अल्पश्रुतेनापि ध्यानं भवतीति ज्ञात्वा किं कर्तव्यम्.....।" ( तृतीयाधिकार गाथा ५७ की वृत्ति ) बिना विशेष ध्यान साधना के सिद्धि प्राप्त करने के रूप में प्रसिद्ध भरत चक्रवर्ती का नाम भी यहाँ पूर्व भव में ध्यान साधना करने वालों में ग्रहण किया गया है। अतः यह भूल नहीं करना चाहिये कि भरत की तरह हमें भी दोक्षा लेते हो तत्काल केवलज्ञान हो जायेगा। क्योंकि उनके वर्तमान भव के पोछे पूर्ववर्ती जन्म-जन्मान्तरों की साधनायें स्थित हैं। उक्त आठ प्रकार से ध्यान के वर्णन की प्रतिज्ञा इति संक्षेपतो ग्राह्यमष्टांग योगसाधनम् । विवरीतुमदः किंचिदुच्यमानं निशम्यताम् ॥ ४० ॥ अर्थ-इस प्रकार से योग को साधने के लिये कारणोभूत, जो संक्षेप से आठ अंग कहे गये हैं, उनको अंगीकार करना चाहिये। अतः आगे इन्हीं आठ अंगों का विवेचन किया जाता है, उसे ध्यान पूर्वक सुनो ॥४०॥ विशेष-यहाँ अष्टांग योगसाधन से तात्पर्य उन आठ ध्यातव्य बातों से हैं, जिनका विवेचन सेंतोसवें श्लोक में किया जा चुका है। अष्टांग । योग साधन को इस रूप में ग्रहण किया जा सकता है १. ध्याता-(ध्यान करने वाला निष्पही साधु ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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