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________________ २८ तत्त्वानुशासन प्रकार का शवलध्यान है और यह मुक्ति महल में प्रवेश कराने का कारण कहा गया है। अमितगतिश्रावकाचार के पन्द्रहवें परिच्छेद के ९वें से १५ वें श्लोक तक के आधार पर यह वर्णन किया गया है। निष्कषायभाव भाव से निर्मल परिणाम शुक्लध्यान में होते हैं। शुक्लध्यान के स्वामी वज्रसंहननोपेताः पूर्वश्रुतसमन्विताः । दघ्युः शुक्लमिहातीताः श्रेण्योरारोहणक्षमाः ॥ ३५ ॥ अर्थ-इस जगत् में वज्रवृषभनाराचसंहनन वाले, चौदह पूर्व श्रुतज्ञान को धारण करने वाले तथा क्षपकश्रेणी पर आरोहण करने में समर्थ प्राचीन लोगों ने शुक्लध्यान को धारण किया था ॥ ३५ ॥ विशेष-शुक्लध्यान के चार भेद हैं । वस्तु के द्रव्य-गुण-पर्याय का परिवर्तन करते हुए चिन्तन करना पृथक्त्ववितर्कविचार शुक्लध्यान है । श्रुतज्ञान के अवलंबन द्वारा बिना परिवर्तन किये हुये द्रव्य, पर्याय या योग में चिन्तन का रुकना एकत्ववितर्क अवीचार शुक्लध्यान है। ये दोनों शक्लध्यान ११ अंग और १४ पूर्वो के ज्ञाता श्रुतकेवलियों के होते हैं। बादरकाययोगी बन सूक्ष्म काययोग के निरोधक रूप न गिरते हुए आत्मा में आत्मा की एकाग्रता सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति शुक्लध्यान है तथा योग की क्रिया से रहित आत्मा की आत्मा में एकाग्रता समुच्छिन्नक्रियानिवृत्ति अथवा व्युपरतक्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान है। ये दोनों शक्लध्यान केवलियों के होते हैं। कहा भी गया है-शुक्ले चाये पूर्वविदः । परै केवलिनः ।' -तत्त्वार्थसूत्र, ९/३७-३८ गुणस्थानों की अपेक्षा प्रथम शुक्लध्यान आठवें से ग्यारहवें गुणस्थान तक, द्वितीय बारहवें, तृतीय तेरहवें तथा चतुर्थ शुक्लध्यान चौदहवें गुणस्थान में होता है। ___ अमिततिश्रावकाचार में शुक्लध्यान का वर्णन करते हुए कहा गया है कि आत्मा को निर्मल करने में समर्थ और रत्न के प्रकाश के समान स्थिर शुक्लघ्यान आठवें अपूर्वकरण आदि गुणस्थानवर्ती मुमुक्षु साधकों के होता है । चिरकाल से संचित सब कर्म ध्यान के द्वारा शीघ्र उड़ा दिये जाते हैं, जिस प्रकार बढ़े हुए बादलों का समूह पवन के द्वारा उड़ा दिया जाता है । (द्रष्टव्य १५/१८-१९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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