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________________ तत्त्वानुशासन १५ है-ईषत् या हल्की कषाय । ये ९ हैं-हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद एवं नपुंसकवेद । इन पच्चीस कषायों के प्रभाव से सत्य, अपत्य, उभय, अनुभय ४ मनोयोग , ४ वचनयोग तथा औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र , आहारक, आहारकमिश्र एवं कार्मण से ७ काययोग=१५ योगों की प्रवृत्ति होती है। इनकी प्रवृत्ति से १२ प्रकार की अविरति उत्पन्न होती है और इस कारण कर्मों का बन्ध होता है । मोहाभिभूत जीव नाना प्रकार की कुचेष्टाओं को कर कषायोंनोकषायों से अपने को परिपुष्ट करता है अज्ञानमोहमदिरां परिपीय मुग्ध, __ हे हन्त हन्ति परिवल्गति जल्पतीष्टम् । पश्येदृशं जगदिदं पतितं पुरस्ते, किन्तुध्वंसे त्वमपि वालिश ! तादृशोऽपि ॥ १७ ॥ -अमृताशीति हे मूढ़े ! अज्ञानरूप मोहमदिरा के पान का प्रत्यक्ष कुफल देखकर भी तुम उसका त्याग करना नहीं चाहते यह अत्यन्त खेद की बात है। अहो खेद है लोग मदिरा पोकर नशा में चूर हो जाता है । जो मन में आता है वही बकता है, बोलता है, इच्छानुसार हँसता, गाता, बजाता रोता हैहिताहित विवेक से शून्य होकर जहाँ-तहाँ नालियों में गिरता पड़ता है। देखो ! यह संसार भी उसी प्रकार मोहमदिरा का पान कर स्व-पर के भेद को भूलकर विपरीत आचरण करता है और दुर्गति का पात्र बनता है । हे मूर्ख ! उस प्रकार प्रत्यक्ष होने पर भी, फिर तुम क्यों ऊपर दष्टि किये हो ? अर्थात् तुम्हें सावधान होना चाहिये किन्तु उल्टे तुम उसकी ओर देखना भी नहीं चाहते । यह विपरीत दशा क्यों ? विचार करो। तदर्थानिन्द्रियैर्गृह्णन् मुह्यति द्वेष्टि रज्यते । ततो बंधो भ्रमत्येवं मोहव्यूहगतः पुमान् ॥ १९॥ अर्थ-फिर स्पेशादि इन्द्रियों के द्वारा उनके विषयों को ग्रहण करता हुआ जीव मोहित होता है, द्वेष करता है । एवं अनुराग करता है। उससे बन्ध होता है और इस प्रकार मोह के व्यूह मे फंसा हुआ जीव भ्रमण करता रहता है ।। १९ ॥ विशेष-(१) जब जीव इन्द्रियों के द्वारा विषयों का ग्रहण करता है, तब एक समय में जैसे शुभ या अशुभ भाव होते हैं वैसे ही कर्मों का आस्रव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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