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________________ तत्त्वानुशासन (२) मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये बन्ध के कारण हैं । मिथ्यादर्शन अगृहीत एवं गृहीत दो प्रकार का है । गृहीत मिथ्यादर्शन के एकान्त, विपरीत, संशय, बैनयिक और अज्ञान ये पाँच भेद होते हैं। षट्काय जीवों की हिंसा एवं ५ इन्द्रिय और मन के विषयों में आसक्ति रूप अविरति १२ प्रकार की होती है। कषायों के उदय में कर्तव्य के प्रति अनादर भाव को प्रमाद कहते हैं। अनन्तानुबंधो आदि क्रोधादि चतुष्क एवं नौ नोकषाय ये २५ कषायें कही गई हैं, क्योंकि ये आत्मा को दुःख देती हैं। योग आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन है, जो मन-वचन-काय के निमित्त से होता है। (३) परमार्थ में सूख एवं दुःख दोनों ही प्रकार के बन्ध संसरण के निमित्त हैं । अतः उन्हें और उनके कारणों को हेय कहा गया है।। सुख किसे कहते हैं ? (१) स्वभावप्रतिकूल्याभावहेतुकं सौख्यं (पं०का० ) स्वभाव के प्रतिकूल विभाव भावों का नाश होने से प्राप्त आत्मीक शान्तरस सुख है । (२) अनाकुलत्वैक लक्षणं सौख्यम् (प्र० भा०) सुख का लक्षण अनाकलता है। (३) 'स्वभाव प्रतिघाताभावहेतुकं हि सौख्यम्'-स्वभाव प्रतिघात का अभाव सो सुख है। (४) "तत्सुखं यत्रनासुखम्"सुख वही है जहाँ दुख नहीं है । ( आ० शा० ) दुख-(१) “पीड़ा लक्षण परिणामो दुखं"-पीड़ारूप आत्मा का परिणाम दुख है (स० सि०)। (२) अणिठ्ठत्थ समागमो- इत्थवियोगो च दुखं णाम-अनिष्ट अर्थ के समागम और इष्ट अर्थ के वियोग का नाम दुख है। ( ध०।१३ ) मोक्ष एवं उसके कारण उपादेय मोक्षस्तत्कारणं चैतदुपादेयमुदाहृतम् । उपादेयं सुखं यस्मादस्मादाविर्भविष्यति ॥ ५॥ अर्थ-मोक्ष और उसके कारण इस जीव के लिए ग्रहण करने योग्य हैं ऐसा उस सर्वज्ञ देव के द्वारा कहा गया है। चूंकि इनसे ( मोक्ष तथा उसके कारण ) आत्मीक सुख प्रगट होता है उसकी अनुभूति होती है अतः ये उपादेय हैं ॥ ५ ॥ विशेष-(१) मिथ्यादर्शन आदि बन्ध के हेतुओं का अभाव हो जाने से जब नये कर्मों का बन्ध रुक जाता है तथा तप आदि के द्वारा पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा हो जाती है। तब आत्मा सभी कर्मबन्धनों से मुक्त हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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