SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - २१ -- ११९ १२० १२१ १२१ १२२ १२३ १२३ १२३ १२३ १२५ १३४ ११९. धर्म्यशुक्लध्यानों में भेदाभेद १२०. स्वात्मदर्शन अति दुःसाध्य १२१. (१) पार्थिव धारणा १२२. (२) आग्नेयी धारणा १२३. (३) मारुतो धारणा १२४. (४) वारुणी धारणा १२५. (५) तत्त्वरूपवती धारणा १२६. एक शंका १२७. शंका का समाधान १२८. दूसरी तरह से समाधान १२९. ध्यान का फल १३०. मुक्तात्माओं की लोकाग्र में स्थिति १३१. मुक्त होने पर संकोच विस्तार नहीं १३२. मुक्त जीवों का अन्तिम शरीर से कुछ कम आकार १३३. मुक्तावस्था में जीव का अभाव नहीं १३४. जीव का स्वभाव स्व-पर प्रकाशक १३५. मुक्तारमा स्वस्वभाव में स्थित १३६. त्रिकाल त्रिलोक के ज्ञाता होकर भी उदासीन १३७. सिद्धों को अनन्तसुख १३८. सिद्धसुख विषय एक शंका १३९. समाधान १४०. मोक्ष हो उत्तम पुरुषार्थ १४१. एकांतवादियों के बंध और मोक्ष नहीं १४२. ग्रंथकार की लघुता १४३. ग्रंथकार की क्षमा याचना १४४. ग्रंथकार की मंगलकामना १४५. श्लोकानुक्रमणिका الله १३५ १३६ १३७ १३७ १३८ १३८ १३९ १४० १४१ १४२ १४२ १४३ १४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy