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________________ - २० - ८८ ८८ ९३ ९७ ९८ १०२ १०२ १०३ १०३ १०३ ९०. भाव ध्येय का स्वरूप ९१. षड्विध द्रव्यों में जीव द्रव्य उत्तम ध्यान करने योग्य है ९२. जीव की उत्तम ध्येयता का कारण ९३. ध्येय सिद्धों का स्वरूप ९४. ध्येय अरहन्तों का स्वरूप ९५. अरहंतदेव के ध्यान से मोक्ष की प्राप्ति ९६. ध्येय आचार्य उपाध्याय साधु का स्वरूप ९७. ध्येय पदार्थ चतुर्विध अथवा अन्यापेक्षा द्विविध ९८. भाव ध्येय ९९. ध्यान में ध्येय को स्फुटता १००. पिण्डस्थ ध्येय का स्वरूप १०१. ध्याता ही परमात्मा १०३. सब ध्येय माध्यस्थ १०४. माध्यस्थ के पर्यायवाची नाम १०४. परमेष्ठियों के ध्यान से सब ध्यान सिद्ध १०५. निश्चयनय की अपेक्षा स्वावलंबन ध्यान के कथन की प्रतिज्ञा १०६. स्व को जाने-देखे-श्रद्धा करे १०७. डरो मत श्रुतज्ञान की भावना करो १०८. आत्मभावना करो १०९. आत्मभावना कैसे करें ? ११०. चिन्ता का अभाव तुच्छ भाव नहीं अपितु __स्वसंवेदन रूप १११. स्वसंवेदन का स्वरूप ११२. स्वसंवेदन की ज्ञप्तिरूपता ११३. शून्याशन्य स्वभाव आत्मा की आत्मा के द्वारा प्राप्ति ११४. स्वात्मा ही नैरात्माद्वैत दर्शन ११५. स्वात्मा ही नैर्जगत्य ११६. नैरात्म्य दर्शन ११७. द्वैताद्वैत दृष्टि ११८. आत्मदर्शन का फल १०४ १०५ १०७ १०८ १०८ ہ ११३ س م ११७ م ११८ ११८ ११८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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