________________
१००
तत्त्वानुशासन श्रमण, यति, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदन्त, दान्त क यति ये साधु के पर्यायवाची हैं ।
५ महाव्रत, ५ समिति, ५ इन्द्रियरोध, ६ आवश्यक, ७ शेष गुण साधु परमेष्ठी के मुख्य गुण हैं। इन २८ गुणों का आश्रम करके ध्येय साधु परमेष्ठी ध्यान के योग्य हैं।
ध्येय पदार्थ चतुर्विध अथवा अन्यापेक्षा द्विविध एवं नामादिभेदेन ध्येयमुक्तं चतुर्विधम् ।
अथवा द्रव्यभावाभ्यां द्विधैव तदवस्थितम् ॥१३१॥ अर्थ-इस प्रकार नाम आदि ( नाम, स्थापना, द्रव्य एवं भाव ) के भेद से ध्यान करने योग्य पदार्थ चार प्रकार का कहा गया है अथवा द्रव्य एवं भाव के भेद से वह दो प्रकार का ही अवस्थित है ।।१३१।।
भाव ध्येय द्रव्यध्येयं बहिर्वस्तु चेतनाचेतनात्मकम् । भावध्येयं पुनर्येयसन्निभध्यानपर्ययः ॥१३२॥ अर्थ-चेतन और अचेतन रूप बाह्य पदार्थ द्रव्य ध्येय अर्थात् ध्यान करने योग्य द्रव्य हैं और ध्येय के समान ध्यान का पर्याय अर्थात् ध्येय और ध्यान की अभिन्नता भावध्येय या ध्यान करने योग्य भाव हैं ॥१३२ ।।
विशेषगुण व पर्याय दोनों भाव रूप ध्येय है । ध्येय के सदृश ध्यान की पर्याय भाव ध्येय रूप से परिगृहीत है।
सभी द्रव्यों के यथावस्थित गुणपर्याय ध्येय हैं
बारसअणुपेवखाओ उसमसेडिरवगसेडिचडविहाणं तेवीसवग्गणाओ पंचपरियट्टाणि द्विदिअणुभागपयडिपदेसादि सव्वं पि ज्झेयं होदि त्ति दट्ठव्वं ।-बारह अनुप्रेक्षाएं, उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी पर आरोहणविधि, तेईस वर्गणाएँ, पाँच परिवर्तन, स्थिति, अनुभाग, प्रकृति और प्रदेश आदि ये सब ध्यान करने योग्य हैं। (धवला पु० )
रत्नत्रय व वैराग्य की भावनाएं ध्येय हैं-जिसने पहले उत्तम प्रकार से अभ्यास किया है, वह पुरुष ही भावनाओं द्वारा ध्यान की योग्यता को प्राप्त होता है। और वे भावनाएँ, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वैराग्य से उत्पन्न होती हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org