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________________ ९६ तत्त्वानुशासन नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव, स्वकीयगुण, स्वकीयपर्याय, च्यवन, आगति और सम्पदा इन नौ बातों का आश्रय करके अरहन्त भगवान् का ध्यान करें। णामजिणा जिणणामा ठवणजिणा तह य ताह पडिमाओ। दव्वजिणा जिणजीवा भावजिणा समवसरणत्था । अरहन्त भगवान् के जो नाम हैं वे नाम जिन हैं, उनकी प्रतिमाएँ स्थापना जिन हैं, अर्हन्त भगवान् का जीवद्रव्य द्रव्य जिन है और समवसरण में स्थित भगवान् भावजिन हैं । अनन्त चतुष्टय उनके स्वकीय गुण हैं, दिव्य परमौदारिक शरीर, महाअष्टप्रातिहार्य और ममवसरण ये अरहंत भगवान् की स्वकीय पर्याय हैं। अरहन्त भगवान्-तीर्थंकर भगवान् स्वर्ग या नरकगति से च्यत होकर उत्पन्न होते हैं । भरत-ऐरावत और विदेह क्षेत्र में उनका आगमन होता है अर्थात् स्वर्ग या नरक से च्युत होकर इन क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं। उनके गर्भावतरण के छह मास से लगातार माता के अंगण में सूवर्ण और रत्नों की वर्षा होती है तथा गर्भावतरण हो चुकने पर नौ मास पर्यन्त माता के अंगण में सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से कुबेर सुवर्ण और रत्नों की वर्षा करता है तथा उनका नगर सुवर्णमय हो जाता है यह अरहन्त भगवान् की सम्पत्ति है (अ० पा० टी० बो० प्रा०) इसी प्रकार गुणस्थान मार्गणा, पर्याप्ति, प्राण, जीवस्थान के द्वारा अरहन्त को योजना कर उनका ध्यान करना चाहिये-यथा तेरहवें गुणस्थान में स्थित सयोगकेवली जिनेन्द्र अरहन्त कहलाते हैं। उनके ३४ अतिशय ८ प्रातिहार्य ४ अनन्त चतुष्टय मूल गुण होते हैं इनका आश्रय कर अरहन्त का ध्यान करें। १४ मार्गणाओं में अरहंत के-गति में मनुष्यगति, इन्द्रिय मेंपंचेन्द्रिय, काय में-त्रसका यिक, योग में ७ योग-सत्य मनोयोग, अनुभय मनोयोग, सत्य वचन योग, अनुभव वचनयोग, औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मण काययोग हैं। वेद में-अवेद, कषाय में-अकषाय, ज्ञान में-केवलज्ञान, संयम में-यथाख्यातसंयम, दर्शन में केवलदर्शन, लेश्या में-एक शुक्ल लेश्या, भव्य-अभव्य में से अरहन्त भव्य ही हैं, अरहंत के क्षायिक सम्यक्त्व ही होता है, संज्ञी-असंज्ञी में से वे संज्ञी ही हैं तथा आहारक अनाहारक के दोनों भेद अरहन्तों के सम्भव हैं क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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