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सिद्धान्तसारः
(१२..२१
दशधर्मरतो नित्यं तपस्तनिष्ठमानसः । संवृणोति च कर्माणि यस्त्वेवं चिन्तयेद्बुधः ॥ २१ मिथ्यात्वाराधनायुक्तः कर्म बध्नाति चेतनः । निर्जीर्यते पुनस्तेन सम्यक्त्वाद्युपसेवनात् ॥ २२ लोकः सर्वोऽपि जीवेन कर्मणां वशतिना । अवगाह विमुक्तोऽस्ति यस्येति हृदि वर्तते ॥ २३ वैभवं सर्वलोकानां सुलभं भवतिनाम् । श्रीजिनेन्द्रमहाधर्मलब्धबोधिस्तु' दुर्लभा ॥ २४ । इत्थं परात्मविज्ञानं यस्य स्यादनिवारितम् । तं सदात्मानमाख्यान्ति सम्यगाराधकं जिनाः॥२५ पञ्चैव मरणान्याहुः साराधारा' यतीश्वराः । शुभाशुभगतिर्येभ्यो जानन्तीह विचक्षणाः॥२६ आद्यः केवलिनः प्रोक्तो मृत्युः पण्डितपण्डितः । साधूनां संयमोक्तानां पण्डितं मरणं पुनः॥२७
विचार करता है कि यह आत्मा मिथ्यात्वकी आराधनासे युक्त होकर कर्म बांधता हैं । परंतु जब यह आत्मा सम्यक्त्वकी सेवा करता है तब बंधे हुए कर्मकी निर्जरा करता है ।। २१-२२ ।।
__यह जीव कर्मवश होकर संपूर्ण लोकको अपने जन्मसे व्याप्त करके छोड देता है ऐसा विचार इस संयतके मनमें सदा रहता है ।। २३ ॥
संसार में भ्रमण करनेवाले संपूर्ण मनुष्योंको सर्व प्रकारका वैभव प्राप्त होता है, परंतु जिनेन्द्र के महाधर्मसे होनेवाली रत्नत्रयकी प्राप्ति, जिसको बोधि कहते हैं, वह अतिशय दुर्लभ है।॥ २४ ॥
इस प्रकारसे जिसको अपने स्वरूपका और परपदार्थोंका ज्ञान हुआ है, तथा जो अनिवारित है अर्थात् परको आत्मा समझकर जिसके मनमें अब कभीभी भ्रान्ति उत्पन्न नहीं होगी, जो परको परही मानता है, उसमें आत्मीय-बुद्धिको धारण नहीं करता है ऐसे आत्माकोही जिनेश्वर सदात्मा-प्रशस्त आत्मा और वही उत्तम आराधक है ऐसा कहते हैं ॥ २५ ॥
( मरणोंके पांच भेद।)- सार-रत्नत्रय जिनको आधार है अथवा रत्नत्रयके आधारभूत मुनीश्वर मरण पांच प्रकारसे है ऐसा कहते हैं तथा विद्वज्जन उन मरणोंसे शुभाशुभगति जानते हैं ॥ २६ ।।
विशेष- उत्पन्न हुए पदार्थका नाश होना मरण है। देवपना, पशुपना, नारकीपना और मनुष्यपना ऐसे पर्यायोंका नाश होना मरण है। पूर्व आयुके नाशसे जीव मरता है और अन्य आयुके उदयसे वह नया पर्याय-देव मनुष्यादि पर्याय धारण करता है। ऐसे मरणके आचार्योंने पांच भेद कहे हैं। १ पण्डितपण्डित-मरण, २ पण्डितमरण, ३ बालपण्डित-मरण४ बालमरण और ५ बालबाल मरण ।
( पण्डितपण्डित मरण और पण्डित मरण। )- क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शनादि नवकेवल लब्धिके धारक ऐसे केवलिके मरणको पण्डितपण्डित-मरण कहते हैं । जिनको संयमी कहा है ऐसे साधुओंको अर्थात् महाव्रत, गुप्ति और समितियों के पालकोंको संयमी मुनि कहते हैं। इनके
१ आ. लब्धिर्बोधिः २ आ. महात्मानं ३ आ. सारोद्धाराद्यतीश्वराः
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