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-१०. २६)
सिद्धान्तसारः
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नमस्कृत्य महावीरं मेदायं च गणेश्वरम् । वीरसेनं च वक्ष्यामि प्रायश्चित्तं कियत्स्वतः ।। १८ प्रायः प्राणी करोत्येव यत्र चित्तं सुनिर्मलं । तदाहुः शब्दसूत्रज्ञाः प्रायश्चित्तं यतीश्वराः ॥ १९ सति दोषे न चारित्रं कर्माभावो न तद्विना । निर्वृतिस्तदभावे न तस्माद्वतमनर्थकम् ॥ २० अत एव प्रकुर्वन्ति तदेवादी महत्तपः । प्रायश्चित्तमकुर्वाणो न नरः शुद्धिमृच्छति ॥ २१ प्रायश्चित्तविधि शुद्धमजानानो गणी पुनः। स्वात्मानं दूषयत्येव शिष्यं च प्रतितिनम् ॥ २२ गुरुमासस्तथा भिन्नमासो लध्वादिमासकः । पञ्चकल्याणभेदश्च भवन्त्येते सुनिर्मलाः ॥ २३ पञ्च चाम्लानि पूतानि नीरसाहारपञ्चकम् । एकस्थानानि पञ्चेति पुरुमण्डलपञ्चकम् ॥२४ क्षपणानि तथा पञ्च सर्वैः संमोलितैर्भवेत्। पञ्चकल्याणकं नाम विशुद्धः कारणं परम् ॥ २५ कालक्षेत्रे तथा भावद्रव्यसत्त्वाद्यपेक्षया । स एव सान्तरः प्राजर्गुरुमासो' निगद्यते ॥ २६
(प्रायश्चित्ततपका वर्णन करनेकी प्रतिज्ञा। )- श्रीमहावीरप्रभुको, मेदार्य नामक गणधरजीको और श्रीवीरसेन आचार्यको नमस्कार करके मैं खुद कुछ प्रायश्चित्त तपका वर्णन करता हूं ॥ १८ ॥
(प्रायश्चित्तकी निरुक्ति।) - जिसमें प्रायः प्राणी अपने चित्तको-मनको निर्मल बनाता है, ऐसे तपको शब्दसूत्रके ज्ञाता मुनीश्वर प्रायश्चित्त कहते हैं ॥ १९ ॥
(प्रायश्चित्तको प्रथम स्थान क्यों ? ) - यदि दोष उत्पन्न होंगे तो चारित्र नहीं रहता और चारित्रके बिना कर्मका नाश नहीं होगा और कर्मोका अभाव नहीं होनेपर मोक्षसुखकी प्राप्ती नहीं होती और व्रतोंका पालन व्यर्थ होगा। इसलिये मुनीश्वर वही तप प्रथमतः करते हैं। प्रायश्चित्ततप नहीं करनेवाला मनुष्य दोषोंका अभाव न होनेसे शुद्ध नहीं होगा । परिणाम निर्मल नहीं होंगे ।। २०-२१ ॥ ..
(प्रायश्चित्तके अज्ञाता आचार्य । ) - प्रायश्चित्तकी विधि और शुद्धि न जाननेवाला आचार्य अपनेकोभी तथा अपना अनुसरण करनेवाले शिष्यकोभी दोषयुक्त करता है ॥ २२ ॥
( प्रायश्चित्तोंके नाम। ) - गुरुमास, भिन्नमास, लघुमास, पञ्चकल्याण ये प्रायश्चित्तके प्रकारोंके नाम हैं और ये प्रायश्चित्त अतिशय निर्मल हैं ॥ २३ ॥
(पंचकल्याण प्रायश्चित्तका स्पष्टीकरण । ) - पांच आचाम्लभोजन-कांजीमिश्रित भात, पांच नीरस आहार, पांच एकस्थान, पांच पुरुमंडल-कांजी भोजन तथा पांच क्षमणउपवास ये सब मिलकर पंचकल्याणक होता है और यह पंचकल्याणक नामक प्रायश्चित्त विशुद्धिका उत्तम कारण हैं ।। २४-२५ ।।
जहां पानी बहुत है ऐसा प्रदेश, जिसमें कम वर्षा होती है ऐसा प्रदेश, काल-ग्रीष्म वर्षा, हिमकाल-क्षेत्र भाव-परिणाम, द्रव्यसत्त्व शरीरका सामर्थ्य इत्यादिकोंकी अपेक्षासे जब उपर्युक्त पंच
१ आ. मिच्छति २ आ. भेदा ३ आ. लघुमासा. ४ आ. लघुमासो
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