________________
दशमोऽध्यायः। निर्जीयते यया कर्म प्राणिना भवतिना । निर्जरा सा द्विधा ज्ञेया कालेनोपक्रमेण च ॥ १ या च कालकृता सेयं मता साधारणा जिनैः । सर्वेषां प्राणिनां शश्वदन्यकर्मविधायिनी ॥ २ या पुनस्तपसानेकविधिनात्र विधीयते । उपक्रमभवा सेयं सर्वेषां नोपजायते ॥३ येन तप्त्वा' नरः कर्मपुद्गलान्प्रविमुञ्चिति । पुटापकाग्निसन्तप्तहेमवत्तत्तपो मतम् ॥४ बाह्याभ्यन्तरभेदेन द्विविधं तदुदीरितम् । षड्विधं बाह्यमन्यच्च तथैव मुनिपुङ्गवः॥५ वत्तिसंख्यावमोदर्यमपवासश्चतविधः। रसत्यागो विविक्तं तच्छय्यासनमथापरम ॥६ कायक्लेशश्च तद्वाह्य षट्प्रकारमिदं तपः । कथयन्ति जिनाधीशाः कर्मणः क्षपणक्षमम् ॥ ७
दसवा अध्याय । ( निर्जराके दो भेद । )- संसारमें रहा हुआ प्राणी जिसके द्वारा कर्मकी निर्जरा करता है-कर्म अपने में थोडा थोडा निकालकर नष्ट करता है उसको निर्जरा कहते हैं । वह कालके द्वारा और उपक्रमके द्वारा होती है अर्थात् सविपाका निर्जरा और अविपाका निर्जरा ऐसे निर्जराके दो भेद होते हैं ॥ १॥
काल कृतनिर्जरा जिसे सविपाका निर्जरा कहते हैं। उसे जिनेश्वरोंने साधारण निर्जरा नाम दिया है । अर्थात् वह संपूर्ण प्राणियोंको हमेशा होनेवाली और हमेशा अन्यकर्मोको जीवमें लानेवाली है । तात्पर्य यह है, कि कर्मका उदय होकर कर्म अपना फल देकर निकल जाता है परंतु उसी समय आत्मा रागद्वेषवश होता है और बहुतसे नये कर्मोका संग्रह तत्काल उसमें होता है । यह निर्जरा चतुर्गतिके सर्व प्राणियोंको होती है ।। २ ॥
( अविपाका निर्जरा।)- कर्मका उदयकाल प्राप्त होनेके पूर्वही अनेक प्रकारके तपश्चरणोंसे उदयमें लाकर उसको आत्मासे अलग करना अविपाका निर्जरा है । इस निर्जराके समयमें आत्मा रोगी-द्वेषी-मोही नहीं होता; जिससे नया कर्म आत्मामें प्रविष्ट नहीं होता। ऐसी निर्जराको औपक्रमिकी निर्जरा कहते हैं। यह निर्जरा सभी जीवोंको नहीं होती । अर्थात् वीतराग मुनियोंको यह निर्जरा होती है ।। ३ ॥
( तप शब्दकी निरुक्ति अर्थात् अन्वर्थता।)- मूसके अग्निमें सन्तप्त हुए सोनेसे इतर धातुका मिक्षण और मल नष्ट होता है, वैसे जिससे तप्त होकर मनुष्य कर्मपुद्गलोंको छोड देता है वह तप है, अर्थात् तपसे मनुष्य संतप्त होनेसे कर्ममल नष्ट होता है ॥ ४ ॥
( तपके दो भेद। )- बाह्यतप और अभ्यंकर तप ऐसे तपके दो भेद कहे हैं। बाह्यतपके छह भेद हैं तथा अभ्यंतर तपकेभी छह भेद है, ऐसा श्रेष्ठ मुनियोंने कहा हैं। वृत्तिसंख्यान,
१ आ. तप्तो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org