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-९. ३२)
सिद्धान्तसारः
(२०९
सूक्ष्मस्थूलादिधर्मत्वाच्छब्दोऽयं पुद्गलात्मकः । यतोऽमी पुद्गलद्रव्यपर्याया गदिता जिनः ॥ २९ अतिस्थूलं तथा स्थूलं स्थूलसूक्ष्मं च सूक्ष्मकम् । सूक्ष्मस्थूलं सूक्ष्मसूक्ष्म कथयन्ति जिनेश्वराः॥३० ततस्तद्धर्मयुक्तत्वाच्छब्दोऽयं पुद्गलात्मकः । भाषाभाषात्मकत्वेन द्विप्रकारो भवत्यपि ॥ ३१ चतुर्भाषात्मको यस्तु स भाषात्मा निगद्यते । आर्यम्लेच्छमनुष्येषु व्यवहारैकहेतुतः ॥ ३२
शब्दकी पुद्गलताके साधक हैं । शब्दमें सूक्ष्मधर्म, स्थूलताधर्म, अभिघातधर्म, अभिभाव्यधर्म, आदि धर्म होनेसे वह पुद्गलात्मक हैं । स्थूलता, सूक्ष्मतादिक पुद्गलद्रव्यके पर्याय हैं ऐसा जिनेश्वरने कहा है ।। २८-२९॥
जिनेश्वरने पुद्गलद्रव्य छह प्रकारका है ऐसा कहा है। वे प्रकार-अतिस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल और सूक्ष्मसूक्ष्म । अतिस्थूल इसको बादरबादरभी कहते हैं । जिसका छेदन, भेदन, अन्यत्र प्रापण-दूसरे स्थानमें पहुंचाना होता है वह अतिस्थूल है । जैसे पृथ्वी, काष्ठ, पाषाण आदि । स्थूल-जिसका छेदन, भेदन न हो सके परंतु अन्यत्र प्रापण हो सके उस स्कन्धको स्थूल वा बादर कहते हैं । जैसे जल, तैल आदि । स्थूलसूक्ष्म-जिसका छेदन, भेदन अन्यत्र प्रापण कुछभी न हो सके ऐसे नेत्रसे देखने योग्य स्कन्धको स्थूलसूक्ष्म कहते हैं जैसे-छाया आतप, चांदनी आदि । सूक्ष्मस्थूल-नेत्रको छोडकर शेष इंद्रियोंके विषयभूत पुद्गल स्कन्धको सूक्ष्मस्थूल कहते हैं जैसे शब्द, गंध, रस आदि । सूक्ष्म-जिसका किसी इंद्रियके द्वारा ग्रहण न हो सके उस पुद्गल स्कन्धको सूक्ष्म कहते हैं जैसे कर्म । और सूक्ष्मसूक्ष्म जो स्कंधरूप नहीं है ऐसे अविभागी पुद्गलपरमाणुको सूक्ष्मसूक्ष्म कहते हैं । पुद्गलके ऊपरके श्लोकमें जो धर्म बताये हैं, वैसे धर्म शब्दमें होने से शब्द पुद्गलात्मक है । तथा यह शब्द भाषात्मक और अभाषात्मक ऐसा दो प्रकारकाभी होता है ।। ३०-३१ ॥
जो चार भाषात्मक है उसे भाषात्मक शब्द कहते हैं । यह भाषात्मक शब्द आर्य और म्लेच्छोंको व्यवहारके लिये कारण है। स्पष्टीकरण-सत्यभाषा, असत्यभाषा, उभयभाषा और अनुभयभाषा ऐसे भाषाके चार भेद हैं । अथवा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और भूतभाषा ऐसी चार भाषायें काव्यका शरीर मानी गई हैं । दस प्रकारके सत्यार्थके वाचक वचनको सत्यवचन कहते हैं । जो इससे विपरीत है उसको असत्यभाषा कहते हैं । जो कुछ सत्य और कुछ असत्यका वाचक है उसे उभयभाषा कहते हैं । तथा जो सत्यरूप न हो और मृषारूप-असत्यरूप न हो उसको अनुभयवचन कहते हैं । असंज्ञियोंकी समस्त भाषा और संज्ञियोंकी आमंत्रणी आदिक भाषायें अनुभयभाषा कही जाती हैं । आमंत्रणी आदिक नौ भाषायें अनुभय-वचन-रूप मानी हैं।
१ आ. सुसूक्ष्मं च S.S. 27
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