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________________ (६) पृष्ठसंख्या पृष्ठसंख्या आठवा परिच्छेद १६८-२०३ | देवोंके मूलदेहों की ऊंचाई १९७-१९८ सौधर्मसे सर्वार्थसिद्धितक देवोंकी देवोंके चार भेद तथा पहले तीन लेश्यायें १९८ भेदोंमें लेश्याओंका कथन १८६-१८७ कल्पवासी तथा कल्पातीत भवनवासि तथा व्यन्तरोंके भेदवर्णन १८७ लौकान्तिक देवोंका स्वरूप ज्योतिष्क देवोंके अवान्तर भेद १८८ आयु तथा भेद १९८-१९९ ढाईद्वीपके बाहर ज्योतिष्क । देवोंके द्विचरमत्वका निरूपण १९९-२०० देवस्थिर हैं १८९ देवदेवीयोंके उपपाद स्थान २०० जम्बूद्वीपमें तथा लवणसमुद्रमें भवनत्रिक, कल्पवासी तथा चन्द्रसूर्योंका चारक्षेत्र १८९ कल्पातीत देवोंके अवधिज्ञानोंमें कर्कटसङक्रान्तिके समय सूर्यका विशेषता २००-२०१ पहले मार्गपर आना. १८९ नारकियोंके अवधिज्ञानका कथन २०१ दक्षिणायनमें रात्रि-दिनका प्रमाण १९० एकभव धारण कर मुक्त होनेवाले चन्द्रका तारका-ग्रहनक्षत्रादि परिवार १९० देव २०१ चन्द्र और सूर्यके वलय १९१ मोक्षसुखका कथन २०१-२०२ ज्योतिष्कोंका उत्कृष्ट और जघन्य चतुर्गतिमें गुणस्थान २०२ आयु १९१ चन्द्रसूर्यके विमानोंका प्रमाण १९१-१९२ नववा परिच्छेद २०४-२३९ ऋतुविमान कहां है १९२ धर्माधर्मादि द्रव्योंका लक्षणकथन २०४-२०५ स्वर्गयुगलोंका वर्णन १९२-१९३ पुद्गलका लक्षण, अन्नद्रव्योंका ऊर्ध्वलोकके अन्तिम एकरज्जु कायपना तथा कायका अकायत्व २०५ प्रदेशमें नवग्रैवेयकादिक तथा जीवपुद्गलोंका साधारण लक्षण २०६ सिद्ध जीव हैं १९३-१९४ पुद्गलोंमें स्निग्धरूक्षत्वसे बन्ध तथा भवनवासिदेव तथा व्यन्तरदेवके जीवमें रागादिस्नेहसे कर्मबन्ध २०६ __ आयुका वर्णन १९४ पृथिव्यादिकोंमें पुद्गलत्वसिद्धि २०७-२०८ सौधर्मादि सर्वार्थसिद्धयन्त देवोंके भावमन आत्मरूप तथा द्रव्यमन ____ आयुका वर्णन १९४-१९५ पुद्गलरूप हैं २०८ इन्द्रादिक दशभेदोंका वर्णन १९५-१९६ शब्द भी पौद्गलिक ही है २०८-२०९ इन्द्रादि दशभेदोंमेंसे व्यन्तर पुद्गलोंके स्थूलादिक छह भेद २०९ तथा ज्योतिष्क देवोंमें लोकपाल भाषात्मक शब्दके भेद २०९-२१० और त्रायस्त्रिश ये भेद नहीं है १९६ दिशाका आकाशमें अन्तर्भाव २१० प्रवीचारयुक्त तथा अप्रवीचार आकाश तथा पुद्गलोंके प्रदेश २११ युक्त देवोंका निरूपण १९७ परमाणुका स्वरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001846
Book TitleSiddhantasarasangrah
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorJindas Parshwanath Phadkule
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1972
Total Pages324
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size23 MB
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