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असुरादिकुमारास्ते नागविद्युत्कुमारकाः । सुपर्णाग्निकुमाराश्च तथा वातकुमारकाः ॥ ५ स्तनितोदधिसद्वीप दिक्कुमारा भवन्त्यभी । भावना भवनावासास्तत्सामान्यविशेषतः ॥ ६ किन्नराः किम्पुरुषाश्च व्यन्तरास्ते महोरगाः । गन्धर्वाश्च तथा यक्षा राक्षसा भीमविग्रहाः ॥ ७ भूताश्चेति' पिशाचाश्च विविधान्तरवासिनः । यतोऽमी व्यन्तरास्तस्मान्निगद्यन्ते मनीषिभिः ॥८
सिद्धान्तसार:
पीतलेश्यावाला - कार्य अकार्यको समझता है, सेव्य असेव्यको जानता है । सबके विषयों में समदर्शी, दया और दानमें तत्पर, और कोमलपरिणामी होता है ।
पद्मलेश्यावाला- दानशील, भद्रपरिणामी, उत्तम कार्य करनेवाला, क्षमाशील तथा मुनि, गुरु आदिकी पूजा में तत्पर होता है ।
शुक्ललेश्यावाला - पक्षपात नहीं करता है, निदान नही बांधता है, समदर्शी होता है, इष्टसे राग और अनिष्ट में द्वेष नहीं करता है ।
पहले तीन निकायोंके देवोंकी कृष्णादिक चार लेश्यायें भावलेश्यायें हैं । द्रव्यलेश्यायें इन देवोंकी भिन्न भिन्न हुआ करती है । भावलेश्याके अनुसार द्रव्यलेश्यायें इनकी नहीं होती हैं । ( भवनादि देवोंके प्रभेद । ) - भवनवासी देव दश प्रकारके, व्यन्तर देव आठ प्रकारके, ज्योतिष्क देव पांच प्रकारके और कल्पवासी देव बारह प्रकार के हैं ॥ ४ ॥
( भवनवासियोंके दश प्रकार । ) - असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार, और दिक्कुमार ऐसे भवनवासी देव दश प्रकारके हैं । स्पष्टीकरण- सामान्यकी अपेक्षासे इन दश प्रकारके देवोंको 'भवनवासी देव' कहते हैं और विशेषकी अपेक्षासे असुरादि भेद हैं । मूलकर्म देवगति नाम है । उसके अन्तर्भेद भवनवास्यादि चार हैं; तथा असुरादिक विशेष संज्ञायें हैं, और वे विशिष्ट नामकर्मोंदयसे प्राप्त हुई हैं । अतः ये सब भेद देवगति - नामकर्मके हैं । अर्थात् इस गतिनामकर्मके असंख्यात भेद होते हैं । इन सर्व देवोंकी आयु और स्वभाव निश्चित होनेपर भी कुमारावस्थावालोंके समान उद्धतवेष, भाषा, आभरण, आयुध, यान वाहनादिक रहते हैं । रागक्रीडामें इनको अत्यंत रुचि रहती है । इसलिये इनको कुमार कहते हैं ।। ५-६ ।।
( व्यंतरोंके अवान्तर भेद । ) - किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष और भयानक शरीरवाले राक्षस, भूत और पिशाच ये आठ भेद व्यंतरोंके हैं । व्यंतर यह इन देवोंकी सामान्य संज्ञा है । विविध देशोंमें इनके निवासस्थान हैं इसलिये इनको व्यन्तर कहते है । इनके जो किन्नरादिक आठ भेद कहे हैं वे किन्नर नामकर्मोदय, किंपुरुष नामकर्मोदय, महोरग नामकर्मोदय इत्यादिकसे उत्पन्न हुए हैं। 'सब देवगति नामकर्मके विशेष भेद हैं ऐसा विद्वान् लोग कहते हैं ॥ ७-८ ॥
१ आ. रचते
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