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अष्टमः अध्यायः। देवा निकायभेदेन जायन्तेऽत्र चतुर्विधाः । यतो दीव्यन्ति सर्वत्र तन्नामाभ्युदये सति ॥ १ भावना व्यन्तरास्तस्माज्ज्योतिष्काः कल्पवासिनः । चतुविधा भवन्त्येते विविद्धिसमन्विताः॥२ कृष्णा नीला च कापोता पीता चैव तथा पुनः। आदितस्त्रिषु देवानां लेश्याः समुपणिताः ॥३ भावना दशधा देवा व्यन्तराश्चाष्टधा मताः।ज्योतिष्काः पञ्चधा कल्पवासिनो द्वादशप्रमाः॥४
आठवा अध्याय। (ऊर्ध्वलोक वर्णन तथा देव निरुक्ति।)- इस लोकमें निकायोंके भेदसे देव चार प्रकारके होते हैं। देवगतिनाम कर्मका उदय होनेसे जो सर्वत्र क्रीडा करते हैं उनको देव कहते हैं। स्पष्टीकरणजो अभ्यन्तर कारण देवगतिनाम कर्मका उदय और बाह्य कारण जो कान्ति ऐश्वर्यादिक उनसे द्वीप, समुद्र, सरोवर, पर्वतादि स्थलोंमें यथेष्ट क्रीडा करते हैं उनको देव कहते हैं ॥१॥
( देवोंके चार भेद । )- भावन- भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और कल्पवासी ऐसे ये देव चार प्रकारके होते हैं। इनमें अणिमा, महिमा आदि नाना प्रकारकी विक्रिया ऋद्धियां होती हैं। स्पष्टीकरण- अणिमा- अतिशय छोटा शरीर बनाना। महिमा- मेरूसेभी बडा शरीर बनाना । गरिमा- वज्रसेभी अधिक वजनवाला शरीर बनाना । लघिमा- वायुसेभी हलका शरीर बनाना । प्राप्ति- जमीनमें खडे होकर अंगुलीके अग्रभागसे मेरुशिखर सूर्यादिकोंको स्पर्श करना । प्राकाम्य- जमीनपर जैसा गमन करते हैं वैसा पानीमें गमन करना । पानीमें जैसा उन्मज्जन निमज्जन करते हैं वैसा भूमिमें करना। ईशित्व- त्रैलोक्यके ऊपर प्रभुत्व रखना । वशित्व- सर्व जीवोंको वश करना । अप्रतिघात-पर्वतमें आकाशके समान गमनागमन करनेका सामर्थ्य रहना । अन्तर्धान- अदृश्यरूप धारण करना । कामरूपित्व-युगपत्- एक कालमें अनेक आकारके रूप प्रगट करनेका सामर्थ्य होना । ऐसी अनेक प्रकारकी ऋद्धियां देवोंको प्राप्त होती हैं ॥ २॥ ( राजवार्तिक आर्या म्लेच्छाश्च सूत्रका भाष्य )
(पहिलेके तीन निकायोंके देवोंमें लेश्यायें। )- प्रथमके तीन निकायोंमें-भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंमें कृष्ण, नील, कापोत और पीत ये चार लेश्यायें हैं ॥ ३ ॥
___ स्पष्टीकरण- लेश्याका स्वरूप पूर्व अध्यायमें कहा गया है । कृष्णलेश्यावालेके लक्षण कृष्णलेश्यावाला जीव तीव्र क्रोधी, वैरको न छोडनेवाला, लडनेका स्वभाव धारण करनेवाला, धर्म और दयासे रहित, और किसीके वश न होनेवाला होता है । नील लेश्यावाला जीव मंद, कार्य करने में विवेकरहित, कलाचातुर्य- रहित, इन्द्रियलंपटी, मानी, कपटी, अतिशय निद्रालु और दूसरोंको ठगानेमें अतिदक्ष, धनधान्योंमें तीव्र अभिलाषी होता है।
कापोत लेश्यावाला जीव- दूसरेके ऊपर रोष करनेवाला, निन्दा करनेवाला, भययुक्त और शोक करनेवाला, दूसरेके ऐश्वर्यादिक सहन नहीं करनेवाला, अन्योंका तिरस्कार करनेवाला, स्वप्रशंसा करनेवाला, दूसरोंके ऊपर विश्वास न करनेवाला, तथा प्रशंसकोंको धन देनेवाला होता है।
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